थक गया हूँ मै आराम चाहिए, महफ़िल से सजी शाम चाहिए। जिंदगी ने खुशियो से ख़ूब नवाज़ा, सहेजने को अब गोदाम चाहिए। नाम तो अब तक बहुत मिला है, अब थोडा सा वक्त गुमनाम चाहिए। लोग बाहर से कुछ अंदर से कुछ, सबको डुप्लीकेट हमनाम चाहिए। ज़रूरतमंदों की मदद कर सकूँ मैं, मुझको इक ऐसा मुकाम चाहिए। नाम था जिस पे वो दाना मिला नहीं, बचे हुए हर दाने पर अपना नाम चाहिए। जमीन हवा पानी सब कुदरती नैमत है, भूमाफियो को क्यूँ इनका दाम चाहिए। मगरूर हवाओं से अब डरते नही हम, जलते हुए चरागो से ये पैगाम चाहिए। – पी एल बामनिया पी एल बामनिया जी की गज़ल पी एल बामनिया जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
थक गया हूँ मै
थक गया हूँ मै आराम चाहिए,
महफ़िल से सजी शाम चाहिए।
जिंदगी ने खुशियो से ख़ूब नवाज़ा,
सहेजने को अब गोदाम चाहिए।
नाम तो अब तक बहुत मिला है,
अब थोडा सा वक्त गुमनाम चाहिए।
लोग बाहर से कुछ अंदर से कुछ,
सबको डुप्लीकेट हमनाम चाहिए।
ज़रूरतमंदों की मदद कर सकूँ मैं,
मुझको इक ऐसा मुकाम चाहिए।
नाम था जिस पे वो दाना मिला नहीं,
बचे हुए हर दाने पर अपना नाम चाहिए।
जमीन हवा पानी सब कुदरती नैमत है,
भूमाफियो को क्यूँ इनका दाम चाहिए।
मगरूर हवाओं से अब डरते नही हम,
जलते हुए चरागो से ये पैगाम चाहिए।
– पी एल बामनिया
पी एल बामनिया जी की गज़ल
पी एल बामनिया जी की रचनाएँ
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