Tag Archives: गोविन्द व्यथित

  • इंसानियत ख़तम होने पर कविता, गोविन्द व्यथित

    जमीन पर गड़े

    जमीन पर गड़े पत्थर ने अचानक दिया रोक पाँवों को एक करारी ठोकर लगी दर्द से कराह उठा तन्द्रा भागी, [...] More
  • अत्याचार सहने पर कविता, गोविन्द व्यथित

    एक इन्सान का जिस्म

    एक इन्सान का जिस्म सड़क पर खुले आम बोटियों में बाँटकर कर दिया गया लावारिस जानवरों के नाम लोंगो ने [...] More
  • सत्य और हवा पर कविता, गोविन्द व्यथित

    धीमे – धीमे बहती हवा

    धीमे - धीमे बहती हवा दौड़ने लगी अचानक कमर के बल झुके कूबड़े पेड़ ने तालियाँ बजानी शुरू कर दीं [...] More
  • आज के सचाई पर कविता, गोविन्द व्यथित

    पुराने देवताओं की जगह

    पुराने देवताओं की जगह नये-नये देवताओं ने कार्यभार सँभाला और पुराने देवों को उनके देवालयों से बलपूर्वक निकाला क्योंकि वे [...] More
  • भिखारी के जीवन पर कविता, गोविन्द व्यथित

    वह भिखारी है

    वह भिखारी है भूख से व्याकुल धँसी हुई आँखें भूखी हैं और प्यास से प्यासी हैं कितनी उदासी हैं माँग [...] More
  • दिन भर की भाग दौड़

    दिन भर की भाग दौड़ के बाद थके हारे पक्षी बेचारे अपने घास-फूस के घोसलों की और लौट रहे हैं [...] More
  • गरीब और आमिर लोगो पर कविता, गोविन्द व्यथित

    आज से मैं

    आज से मैं इस कोशिश में लग गया हूँ कि शहरों और गाँवों की समूची बस्तियों को छोटी-बड़ी सभी हस्तियों [...] More
  • वैभव पर मोहित कविता, गोविन्द व्यथित

    सौन्दर्य पर आकर्षित

    सौन्दर्य पर आकर्षित वैभव पर मोहित चुम्बन को बेताब उन लोगों के बढ़े हुए दोनों हाथ भ्रष्टाचार के उन्नत उरोजों [...] More
  • जीवन का दर्शन, गोविन्द व्यथित

    सौपे गये थे हमें जो दस्तावेज

    सौपे गये थे हमें जो दस्तावेज हमने जिन्हें सँभाल कर रखने की कसम खायी थी जिन पर लिखा था हमारी [...] More
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