सौन्दर्य पर आकर्षित
वैभव पर मोहित
चुम्बन को बेताब
उन लोगों के
बढ़े हुए दोनों हाथ
भ्रष्टाचार के उन्नत उरोजों की ओर
ओर भी बढ़ते जा रहे हैं
जर्जर व्यवस्था में
सुख भोगकर
उत्तेजना की पराकाष्ठा पर
चढ़ते जा रहे हैं
पाश्विक रूप में
विलास सुन्दरी को
बाहुपाश में जकड़ कर
पंजों के नाखूनों में
समा लेने की ललक
देखते ही बनती है
अव्यवस्था के साम्राज्य में
खुले ताण्डव की झलक
सौन्दर्य पर आकर्षित
सौन्दर्य पर आकर्षित
वैभव पर मोहित
चुम्बन को बेताब
उन लोगों के
बढ़े हुए दोनों हाथ
भ्रष्टाचार के उन्नत उरोजों की ओर
ओर भी बढ़ते जा रहे हैं
जर्जर व्यवस्था में
सुख भोगकर
उत्तेजना की पराकाष्ठा पर
चढ़ते जा रहे हैं
पाश्विक रूप में
विलास सुन्दरी को
बाहुपाश में जकड़ कर
पंजों के नाखूनों में
समा लेने की ललक
देखते ही बनती है
अव्यवस्था के साम्राज्य में
खुले ताण्डव की झलक
– गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की कविता
गोविन्द व्यथित जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें