Tag Archives: इक़बाल हुसैन ‘इक़बाल’

  • हमने अर्पण किया

    हमने अर्पण किया जान तन आप पर । आ गया है हमारा ये मन आप पर । इक झलक पर तुम्हारी हज़ारों मिटे, फूंक दें लोग सब जोड़ा धन आप पर । हैं दरस के दिवाने यहाँ से वहाँ, गर्व करता है सारा सदन आप पर । तुम ज़मीं की महक आसमाँ की चमक, और [...] More
  • हादसों पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    छोड़ो हमारा साथ

    छोड़ो हमारा साथ जो तुमको बुरा लगे । वो साथ कैसा साथ जो मिलकर जुदा लगे । था मुद्दतों का साथ मगर वाह रे नसीब, निकले वही रक़ीब कि जो दिलरुबा लगे । खुलकर वह हमसे हाथ मिलाते नहीं हैं जब, तब उनकी आस्तीन में कुछ कुछ छुपा लगे । अब के बरस तो बरसे [...] More
  • अजब मौजे तूफ़ान

    अजब मौजे तूफ़ान के वलवले हैं । नदी की अगन से किनारे जले हैं । दहकते बदन से डरे कब पतंगे, पता था कि मिलकर जलेंगे जले हैं । बहकना मचलना महकना बिखरना, यही सिलसिले तो अज़ल से पले हैं । कमा कर रहे उम्र भर हाथ ख़ाली, वहीं हम खड़े हैं जहाँ से चले [...] More
  • ख्वाब पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    वो जफ़ा थी या वफ़ा

    वो जफ़ा थी या वफ़ा भूल गए हैं अब तक । आप क्यूँ जाने उसे याद रखे हैं अब तक । ज़ख़्म जो तूने दिये देख हरे हैं अब तक, अश्क़ आँखों में दबे पाँव चले हैं अब तक । जो बसाए थे हसीं ख़्वाब कभी आँखों में, देख आँखों में वही ख़्वाब बसे हैं [...] More
  • दर्पण पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    चाहत है तो कुछ

    चाहत है तो कुछ दूरी जरूरी है दर्पण जैसी मज़बूरी ज़रूरी है आपको तब तक नहीं आएगी ज़ख़्मों की जबां जब तलक कांटे से कांटे को निकाला जाएगा "इक़बाल" अभी जहां में ज़िन्दा हैं नेकिया वर्ना गुलाबों में ये खुश्बू नहीं होती कराहने में और मज़ा आता है मौत जब सिरहाने खड़ी होती - इक़बाल [...] More
  • दुआओ पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    तुम तो अपना प्याला

    तुम तो अपना प्याला बड़ा रक्खो यारो ये साकी पे छोड़ो भरता कितनी है तेरे काग़ज के फूलों का सबब बेहतर समझता हूं वो चारागर है तू जो ज़ख्म को भरने नहीं देता बहुत दुश्वार है मुलाकात का आसां होना कभी वक़्त इजाज़त नहीं देता तो कभी आप दिल दे तो खुदा तरकश -सा दे [...] More
  • पैसो पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    मतले ही रह गये

    जाने अनजाने रिश्ते भी ख़ास हो जाते हैं जब पैसे दो पैसे किसी के पास हो जाते हैं मुफलिसी में चने बादाम नज़र आते हैं निबोलो के गुच्छे भी आम नज़र आते हैं हादसों की आग पे भी सेंकते रोटी हैं लोग मौत के माहौल में भी देखते रोटी हैं लोग पृष्ठ जब खुलेंगे कभी [...] More
  • आईने पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    चन्द खुले अश आर

    आईना धुंधला ही रहने दीजिये साफ़ होगा तो सच नहीं सह पाओगे आईना भी बेश क़ीमती हो जाएगा जिस दिन ये झूठ बोलने लग जाएगा होठों से कहकर बात को छोटा न कीजिये मेहन्दी ने खुद-ब-खुद कह दी है दास्तान कारवाँ अपना बचा कर, अब कहाँ ले जाएं हम मंजिलें जलती हुयी हैं, पुरख़तर हैं [...] More
  • बेजुबान पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    बुलन्दी पे नज़र

    बुलन्दी पे नज़र आने वाले बता कितने कांधे लहूलुहान किये हैं बनाने को अपना ये आलीशान मकाँ तबाह कितने कच्चे मकान किये हैं चुप वो यूँ बैठे हैं आगे सर झुकाये शायद पीछे कई बेजुबान किये हैं - इक़बाल हुसैन "इक़बाल" इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर [...] More
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