तुम तो अपना प्याला बड़ा रक्खो यारो ये साकी पे छोड़ो भरता कितनी है तेरे काग़ज के फूलों का सबब बेहतर समझता हूं वो चारागर है तू जो ज़ख्म को भरने नहीं देता बहुत दुश्वार है मुलाकात का आसां होना कभी वक़्त इजाज़त नहीं देता तो कभी आप दिल दे तो खुदा तरकश -सा दे म्यान सा क्या जो दो न समाएँ उठा जो एक हवेली का जिक्र बस्ती में उसी के बाद मुझे मेरा झोपड़ा न मिला शोहरतें इस से बढ़ कर और क्या होंगी कि जिक्र है उसी का और वो शामिल नहीं पहचानने में हमसे कुछ भूल हो गई है क़ातिल तो वो नहीं है, पर दोस्त भी नहीं चरागों की लौ और बढ़ गई दुआओं की जब नज़र पड़ गई – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
तुम तो अपना प्याला
तुम तो अपना प्याला बड़ा रक्खो यारो
ये साकी पे छोड़ो भरता कितनी है
तेरे काग़ज के फूलों का सबब बेहतर समझता हूं
वो चारागर है तू जो ज़ख्म को भरने नहीं देता
बहुत दुश्वार है मुलाकात का आसां होना
कभी वक़्त इजाज़त नहीं देता तो कभी आप
दिल दे तो खुदा तरकश -सा दे
म्यान सा क्या जो दो न समाएँ
उठा जो एक हवेली का जिक्र बस्ती में
उसी के बाद मुझे मेरा झोपड़ा न मिला
शोहरतें इस से बढ़ कर और क्या होंगी
कि जिक्र है उसी का और वो शामिल नहीं
पहचानने में हमसे कुछ भूल हो गई है
क़ातिल तो वो नहीं है, पर दोस्त भी नहीं
चरागों की लौ और बढ़ गई
दुआओं की जब नज़र पड़ गई
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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