Tag Archives: एस डी मठपाल

  • नव वर्ष आने वाला है, एस डी मठपाल

    अन्न का भंडार

    अन्न का भंडार फूलों की बहार नव कोपलें फूट रही नव वर्ष का संचार खेतों की फसल खुली तिजोरी बेईमान मौसम करता सीनाजोरी बाजार का हाल बड़ा बेहाल बिकता विज्ञापन घटिया माल झड़े पात छूटा साथ कोपलें फूटी नव प्रभात दुखी गरीब है मरीज़ मांगता इलाज मौत नसीब पुलिस का डंडा निर्दोष का फंदा अपराधी [...] More
  • कलम पर कविता, एस डी मठपाल

    लगा रहे कलम

    लगा रहे कलम हो रहा कृत्रिम गर्भाधान पैदा करने उन्नत बीज - फल वर्ण संकर के जानवर परिणाम अधिक उत्पादन अधिक पैदावार हम कहते हैं विकास - आर्थिक उन्नति अनजाने - अनचाहे हम खो रहे अपना मूल अपनी पहचान अपनी खुशबू अपनी औषधी अपनी अमृत कलश जुटा रहे पेट भरने का सामान पा रहे लाइलाज [...] More
  • महिला अत्याचार पर कविता, एस डी मठपाल

    गगन सा तुम्हारा ह्रदय है

    गगन सा तुम्हारा ह्रदय है सब रागों की तुममें लय है तुमको सिर्फ भोग्या माना देखो अब कितना प्रलय है गुलाब -चमेली तुममें समाहित गंगा-जमना तुमसे प्रवाहित चमन की खुशबू तुमसे है फिर क्यों हो रही प्रताड़ित जिस्म का बाज़ार सज़ाया हवश का शिकार बनाया ह्रदय विदारक चीत्कारें हैं किसने ये अधिकार जताया सब दौलत [...] More
  • समय पर कविता, एस डी मठपाल

    अंधी दौड़ में किसी को फुरसत नहीं

    अंधी दौड़ में किसी को फुरसत नहीं बिखरते रिश्तों में बुजर्गों को इज्जत नहीं पहुँच जाओ चाहे किसी मुकाम पर प्यार की रिश्तों बिना जन्नत नहीं सपने चाहे लाख देखो कुछ भी हासिल नहीं गर मेहनत नहीं कितनी भी पास हो मंज़िल क्या बढ़ेगें कदम गर हिम्मत नहीं सुख -दुःख तो धूप-छाँव बिन संतोष कोई [...] More
  • आती रही दुश्वारियाँ हिंदी ग़ज़ल

    आती रही दुश्वारियाँ, सजी रही क्यारियाँ

    आती रही दुश्वारियाँ सजी रही क्यारियाँ वक्त हमें सिखाता रहा करते रहे नादानियाँ अपने हाथ में परवरिश बुलाते रहे बीमारियाँ चौंक गए मुसीबत में की नहीं तैयारियां महक रहा चमन आज वीरों ने दी कुर्बानियां करना था जो किया नहीं झेल रहे परेशानियां दाल में कुछ काला है कर रहा मेहरबानियां याद करते उसे सभी [...] More
  • तमन्ना गीत हिंदी में

    इस चमन की सुमन खिलते रहें

    इस चमन की सुमन खिलते रहें सुख दुःख में हम मिलते रहें लाख कोशिश करे हमें तोड़ने की हम जुड़े हुवे हम जुड़ते रहें इंद्रधनुषी रंग छाते रहें खुशियों के गीत गाते रहें लहू के रंग फैलायें न कोई हम जगे हुवे हम जगते रहें पक्षियों का कलरव गूंजता रहे पर्वतों को गगन चूमता रहे [...] More
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