अंधी दौड़ में किसी को फुरसत नहीं बिखरते रिश्तों में बुजर्गों को इज्जत नहीं पहुँच जाओ चाहे किसी मुकाम पर प्यार की रिश्तों बिना जन्नत नहीं सपने चाहे लाख देखो कुछ भी हासिल नहीं गर मेहनत नहीं कितनी भी पास हो मंज़िल क्या बढ़ेगें कदम गर हिम्मत नहीं सुख -दुःख तो धूप-छाँव बिन संतोष कोई दौलत नहीं हर जुबाँ पर उसका नाम नेकी से बढ़कर कोई शोहरत नहीं समय तो रेत की मानिद बिना कर्म भोगे रुखसत नहीं सबकी जुबाँ पर बन गया इश्तेहार बदनामी से बढ़कर कोई फ़ज़ीहत नहीं यहाँ नहीं बनावटी चेहरे गाँव में शहर की जरुरत नहीं घायल पड़ा वो जमीन पर टूटे दिल की कोई मरम्मत नहीं कई मंज़िल तय की कामयाबी के ‘श्याम’ सब खोखले गर जो मोहब्बत नहीं – एस डी मठपाल एस डी मठपाल जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
अंधी दौड़ में किसी को फुरसत नहीं
अंधी दौड़ में किसी को फुरसत नहीं
बिखरते रिश्तों में बुजर्गों को इज्जत नहीं
पहुँच जाओ चाहे किसी मुकाम पर
प्यार की रिश्तों बिना जन्नत नहीं
सपने चाहे लाख देखो
कुछ भी हासिल नहीं गर मेहनत नहीं
कितनी भी पास हो मंज़िल
क्या बढ़ेगें कदम गर हिम्मत नहीं
सुख -दुःख तो धूप-छाँव
बिन संतोष कोई दौलत नहीं
हर जुबाँ पर उसका नाम
नेकी से बढ़कर कोई शोहरत नहीं
समय तो रेत की मानिद
बिना कर्म भोगे रुखसत नहीं
सबकी जुबाँ पर बन गया इश्तेहार
बदनामी से बढ़कर कोई फ़ज़ीहत नहीं
यहाँ नहीं बनावटी चेहरे
गाँव में शहर की जरुरत नहीं
घायल पड़ा वो जमीन पर
टूटे दिल की कोई मरम्मत नहीं
कई मंज़िल तय की कामयाबी के ‘श्याम’
सब खोखले गर जो मोहब्बत नहीं
– एस डी मठपाल
एस डी मठपाल जी की रचनाएँ
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