छोड़ो हमारा साथ जो तुमको बुरा लगे । वो साथ कैसा साथ जो मिलकर जुदा लगे । था मुद्दतों का साथ मगर वाह रे नसीब, निकले वही रक़ीब कि जो दिलरुबा लगे । खुलकर वह हमसे हाथ मिलाते नहीं हैं जब, तब उनकी आस्तीन में कुछ कुछ छुपा लगे । अब के बरस तो बरसे हैं बारिश में हादसे, जिस घर को देखूँ घर वही जलता हुआ लगे । सदियों से हादसों के हैं अन्दाज़ एक से, कल जो है आने वाला गुज़रा हुआ लगे । इक़बाल तो खड़ा है फ़क़ीरी की धूप में, साए में हर अमीर क्यों झुलसा हुआ लगे । – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
छोड़ो हमारा साथ
छोड़ो हमारा साथ जो तुमको बुरा लगे ।
वो साथ कैसा साथ जो मिलकर जुदा लगे ।
था मुद्दतों का साथ मगर वाह रे नसीब,
निकले वही रक़ीब कि जो दिलरुबा लगे ।
खुलकर वह हमसे हाथ मिलाते नहीं हैं जब,
तब उनकी आस्तीन में कुछ कुछ छुपा लगे ।
अब के बरस तो बरसे हैं बारिश में हादसे,
जिस घर को देखूँ घर वही जलता हुआ लगे ।
सदियों से हादसों के हैं अन्दाज़ एक से,
कल जो है आने वाला गुज़रा हुआ लगे ।
इक़बाल तो खड़ा है फ़क़ीरी की धूप में,
साए में हर अमीर क्यों झुलसा हुआ लगे ।
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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