हमने अर्पण किया जान तन आप पर । आ गया है हमारा ये मन आप पर । इक झलक पर तुम्हारी हज़ारों मिटे, फूंक दें लोग सब जोड़ा धन आप पर । हैं दरस के दिवाने यहाँ से वहाँ, गर्व करता है सारा सदन आप पर । तुम ज़मीं की महक आसमाँ की चमक, और सृष्टि फ़िदा गुल बदन आप पर । किस विधा से तुम्हें अपने वश में करें, काम आता नहीं कुछ जतन आप पर । मर मिटे हम नतीजे के सोचे बिना, ध्यान सारा हमारा सजन आप पर । – इक़बाल हुसैन “इक़बाल “ इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
हमने अर्पण किया
हमने अर्पण किया जान तन आप पर ।
आ गया है हमारा ये मन आप पर ।
इक झलक पर तुम्हारी हज़ारों मिटे,
फूंक दें लोग सब जोड़ा धन आप पर ।
हैं दरस के दिवाने यहाँ से वहाँ,
गर्व करता है सारा सदन आप पर ।
तुम ज़मीं की महक आसमाँ की चमक,
और सृष्टि फ़िदा गुल बदन आप पर ।
किस विधा से तुम्हें अपने वश में करें,
काम आता नहीं कुछ जतन आप पर ।
मर मिटे हम नतीजे के सोचे बिना,
ध्यान सारा हमारा सजन आप पर ।
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल “
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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