बुलन्दी पे नज़र आने वाले बता कितने कांधे लहूलुहान किये हैं बनाने को अपना ये आलीशान मकाँ तबाह कितने कच्चे मकान किये हैं चुप वो यूँ बैठे हैं आगे सर झुकाये शायद पीछे कई बेजुबान किये हैं – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बुलन्दी पे नज़र
बुलन्दी पे नज़र आने वाले बता
कितने कांधे लहूलुहान किये हैं
बनाने को अपना ये आलीशान मकाँ
तबाह कितने कच्चे मकान किये हैं
चुप वो यूँ बैठे हैं आगे सर झुकाये
शायद पीछे कई बेजुबान किये हैं
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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