धीमे – धीमे बहती हवा
दौड़ने लगी अचानक
कमर के बल झुके
कूबड़े पेड़ ने
तालियाँ बजानी शुरू कर दीं
हवा ने सिर्फ इतना ही कहा
तुम बड़े वैसे हो
सच बात भी कह देते हो
फिर वह
भेड़ी हुई खिड़कियों को
खोलकर मेज तक पहुँच गयी
मेरी डायरी के पन्नों को
तेजी से उलटने लगी
मेरा लिखा पढ़ने लगी
डायरी बन्द करने के बाद,
उसने कहा……
तुम बड़े वैसे हो
सच बात भी
लिख देते हो
सूर्य
अंधेरों को
धूप में बैठाकर
रोशनी का पाठ
पढ़ा रहा था
हवा ने
उसकी पीठ पर
प्यार से
हाथ फेरते हुए कहा
तुम बड़े वैसे हो
सच बात भी
दिखा देते हो
धीमे – धीमे बहती हवा
धीमे – धीमे बहती हवा
दौड़ने लगी अचानक
कमर के बल झुके
कूबड़े पेड़ ने
तालियाँ बजानी शुरू कर दीं
हवा ने सिर्फ इतना ही कहा
तुम बड़े वैसे हो
सच बात भी कह देते हो
फिर वह
भेड़ी हुई खिड़कियों को
खोलकर मेज तक पहुँच गयी
मेरी डायरी के पन्नों को
तेजी से उलटने लगी
मेरा लिखा पढ़ने लगी
डायरी बन्द करने के बाद,
उसने कहा……
तुम बड़े वैसे हो
सच बात भी
लिख देते हो
सूर्य
अंधेरों को
धूप में बैठाकर
रोशनी का पाठ
पढ़ा रहा था
हवा ने
उसकी पीठ पर
प्यार से
हाथ फेरते हुए कहा
तुम बड़े वैसे हो
सच बात भी
दिखा देते हो
– गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की रचनाएँ
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