सौपे गये थे
हमें जो दस्तावेज
हमने जिन्हें
सँभाल कर रखने की
कसम खायी थी
जिन पर लिखा था
हमारी संस्कृति और
जीवन का दर्शन
न हुआ पालन
और तो और………
उन दस्तावेजों को
हम न सके सँभाल
वैसे अंगुलियों पर
गिने जा सकते है
बीते हुए साल
क्योंकि ये……
ज्यादा पुराने भी तो न थे
आखिर ये दस्तावेज अब
चीथड़े-चीथड़े हो चुके है
उनमें चिपकियाँ लगा-लगाकर
सुरक्षित रखने का
असफल प्रयास कर रहे हैं
उन्हें एक दिन
जीर्ण-शीर्ण दशा में
संग्रहालय में रख दंगे
और…….ये…….
मात्र एक इतिहास की बात
बनकर रह जायेंगे
सौपे गये थे हमें जो दस्तावेज
सौपे गये थे
हमें जो दस्तावेज
हमने जिन्हें
सँभाल कर रखने की
कसम खायी थी
जिन पर लिखा था
हमारी संस्कृति और
जीवन का दर्शन
न हुआ पालन
और तो और………
उन दस्तावेजों को
हम न सके सँभाल
वैसे अंगुलियों पर
गिने जा सकते है
बीते हुए साल
क्योंकि ये……
ज्यादा पुराने भी तो न थे
आखिर ये दस्तावेज अब
चीथड़े-चीथड़े हो चुके है
उनमें चिपकियाँ लगा-लगाकर
सुरक्षित रखने का
असफल प्रयास कर रहे हैं
उन्हें एक दिन
जीर्ण-शीर्ण दशा में
संग्रहालय में रख दंगे
और…….ये…….
मात्र एक इतिहास की बात
बनकर रह जायेंगे
–गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की कविता
गोविन्द व्यथित जी की रचनाएँ
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