जंगल मे ये क्या गदर हो रहा है, आज हर इक शज़र रो रहाँ है। गाँव मे हम बूँद बूँद के लिये तरसे, और शहर मे तू कार धो रहा है। मेरे शहर मे रोज तांडव हो रहा है, अमीरे शहर ऐ सी में सो रहा है। आदमी ही आदमी नज़र आ रहे है, आजकल इंसान कहीं खो रहा है। इंसान आपस मे इतना जल रहा है, सारा शहर धुआँ धुआँ हो रहा है। कोई फरिश्ता अब नहीँ आने वाला, अब तू भी किसकी बांट जो रहा है। तार तार हो गये है भीतर ही भीतर, कलियुग ऐसे रिश्ते ढो रहा है। – पी एल बामनिया पी एल बामनिया जी की गज़ल [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
जंगल मे ये क्या
जंगल मे ये क्या गदर हो रहा है,
आज हर इक शज़र रो रहाँ है।
गाँव मे हम बूँद बूँद के लिये तरसे,
और शहर मे तू कार धो रहा है।
मेरे शहर मे रोज तांडव हो रहा है,
अमीरे शहर ऐ सी में सो रहा है।
आदमी ही आदमी नज़र आ रहे है,
आजकल इंसान कहीं खो रहा है।
इंसान आपस मे इतना जल रहा है,
सारा शहर धुआँ धुआँ हो रहा है।
कोई फरिश्ता अब नहीँ आने वाला,
अब तू भी किसकी बांट जो रहा है।
तार तार हो गये है भीतर ही भीतर,
कलियुग ऐसे रिश्ते ढो रहा है।
– पी एल बामनिया
पी एल बामनिया जी की गज़ल
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