जीवन के चौराहे पर, सब ओर देखिये प्रश्न मिलेगा शान्त सरोवर की छाती पर प्रश्न कमल बनकर निकलेगा एकाकी जीवन के पल में, प्रश्न सँवर कर ही आता है || सपनों का संसार अनूठा | लेकिन प्रश्न उभर आता है || नैनों में कुछ प्रश्न चिन्ह है, अधरों पर कुछ प्रश्न चिन्ह हैं | सागर की छाती पर बैठा, लहरों पर कुछ प्रश्न चिन्ह हैं || प्रश्न प्रश्न बन सदा रहा है, प्रश्न प्रश्न बनकर जीता है, प्रश्न कभी अमृत बनता है, प्रश्न जहर खुद ही पीता है | सूरज चाँद गगन के पंछी, सबके पीछे प्रश्न खड़ा है | रजनी गंधा के आँगन में, आड़े तिरछे प्रश्न अड़ा है | साँस साँस में प्रश्न काँट सा, पावों में चुभता रहता है | फिर पलाश में आग लगाकर, आखों में उगता रहता है | प्रश्न हाशिये पर उगते हैं, पृष्ठों पर भी लिख जाते हैं | अपनों के भी बीच उभरकर, कभी प्रश्न कुछ दिख जाते हैं | एक कदम भी चले नहीं, सौ सौ प्रश्नों के ताने बाने | प्रश्नों की इस मकड़जाल में, कौन भला किसको पहचाने | कदम कदम पर प्रश्न खड़ा है, समाधान का नाम नहीं है | प्रश्न, प्रश्न का परिपूरक है, प्रश्नों का परिणाम नहीं है | जब तक जीवन सार रहेगा, रोम रोम में प्रश्न रहेगा | प्रश्नों में उलझो मत साथी, प्रश्न सदा ही प्रश्न रहेगा | – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
जीवन के चौराहे पर
जीवन के चौराहे पर,
सब ओर देखिये प्रश्न मिलेगा
शान्त सरोवर की छाती पर
प्रश्न कमल बनकर निकलेगा
एकाकी जीवन के पल में,
प्रश्न सँवर कर ही आता है ||
सपनों का संसार अनूठा |
लेकिन प्रश्न उभर आता है ||
नैनों में कुछ प्रश्न चिन्ह है,
अधरों पर कुछ प्रश्न चिन्ह हैं |
सागर की छाती पर बैठा,
लहरों पर कुछ प्रश्न चिन्ह हैं ||
प्रश्न प्रश्न बन सदा रहा है,
प्रश्न प्रश्न बनकर जीता है,
प्रश्न कभी अमृत बनता है,
प्रश्न जहर खुद ही पीता है |
सूरज चाँद गगन के पंछी,
सबके पीछे प्रश्न खड़ा है |
रजनी गंधा के आँगन में,
आड़े तिरछे प्रश्न अड़ा है |
साँस साँस में प्रश्न काँट सा,
पावों में चुभता रहता है |
फिर पलाश में आग लगाकर,
आखों में उगता रहता है |
प्रश्न हाशिये पर उगते हैं,
पृष्ठों पर भी लिख जाते हैं |
अपनों के भी बीच उभरकर,
कभी प्रश्न कुछ दिख जाते हैं |
एक कदम भी चले नहीं,
सौ सौ प्रश्नों के ताने बाने |
प्रश्नों की इस मकड़जाल में,
कौन भला किसको पहचाने |
कदम कदम पर प्रश्न खड़ा है,
समाधान का नाम नहीं है |
प्रश्न, प्रश्न का परिपूरक है,
प्रश्नों का परिणाम नहीं है |
जब तक जीवन सार रहेगा,
रोम रोम में प्रश्न रहेगा |
प्रश्नों में उलझो मत साथी,
प्रश्न सदा ही प्रश्न रहेगा |
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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