पंथ जाने कब रुकेगा
इस तरह कब तक चलेगा
दूर जीवन लक्ष्य कुछ बीमार लगता
स्नेह का बन्धन बहुत लाचार लगता
पिघल जाये मोम सा सावन भले ही
किन्तु यह मधुमास भी पतधार लगता
पाँव कब तक बढ़ सकेगा
इस तरह कब तक चलेगा
फागुनी पुरुवा लगी फिर कसमसाने
ओट से कलियाँ लगी फिर मुस्कराने
शाम का सूरज उदासी झेलता
एक अनसुलझी पहेली सामने
उधर कब तक खुल सकेगा
इस तरह कब तक चलेगा
पाँव में जंजीर बाधे चाँद आया
रोशनी लेकर बहुत दिन बाद आया
आस का पंछी गगन में उड़ गया
गीत का स्वर आज सहसा याद आया
इस तरह कब चलेगा
इस तरह कब चलेगा
दर्द सारे चुक गये पतवार बनकर
अश्रु सारे झर गये नीहार बनकर
यह अकेली साँस कब तक चल सकेगी
भाव सारे खो गये मनुहार बनकर
पंथ जाने कब रुकेगा
इस तरह कब तक चलेगा
दूर जीवन लक्ष्य कुछ बीमार लगता
स्नेह का बन्धन बहुत लाचार लगता
पिघल जाये मोम सा सावन भले ही
किन्तु यह मधुमास भी पतधार लगता
पाँव कब तक बढ़ सकेगा
इस तरह कब तक चलेगा
फागुनी पुरुवा लगी फिर कसमसाने
ओट से कलियाँ लगी फिर मुस्कराने
शाम का सूरज उदासी झेलता
एक अनसुलझी पहेली सामने
उधर कब तक खुल सकेगा
इस तरह कब तक चलेगा
पाँव में जंजीर बाधे चाँद आया
रोशनी लेकर बहुत दिन बाद आया
आस का पंछी गगन में उड़ गया
गीत का स्वर आज सहसा याद आया
पर कटा पंछी उड़ेगा?
इस तरह कब तक चलेगा
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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