जो जैसा मेरे दर आता। ठीक हूबहू खुद को पाता।। फिर मुझपर आरोप लगाता। पक्षपात कह गाल बजाता।। मैं हँसता वह जल भुन जाता। ज्यों दाई से गर्भ छुपाता।। अदल बदल मुखड़े लगवाता। रंग रसायन नित पुतवाता।। शिशु सा नंगा रूप दिखाता। इठलाता एवं शर्माता।। झूठ बोलने को उकसाता। सच्चाई से नज़र चुराता।। लोभ मोह का पाठ पढ़ाता। दुनियादारी मुझे सिखाता।। अवध सवयं को भी भरमाता। मुझ दर्पण पर रोष जताता।। – डॉ. अवधेश कुमार अवध अवधेश कुमार 'अवध' जी की कविता अवधेश कुमार 'अवध' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
दर्पण की व्यथा
जो जैसा मेरे दर आता।
ठीक हूबहू खुद को पाता।।
फिर मुझपर आरोप लगाता।
पक्षपात कह गाल बजाता।।
मैं हँसता वह जल भुन जाता।
ज्यों दाई से गर्भ छुपाता।।
अदल बदल मुखड़े लगवाता।
रंग रसायन नित पुतवाता।।
शिशु सा नंगा रूप दिखाता।
इठलाता एवं शर्माता।।
झूठ बोलने को उकसाता।
सच्चाई से नज़र चुराता।।
लोभ मोह का पाठ पढ़ाता।
दुनियादारी मुझे सिखाता।।
अवध सवयं को भी भरमाता।
मुझ दर्पण पर रोष जताता।।
– डॉ. अवधेश कुमार अवध
अवधेश कुमार 'अवध' जी की कविता
अवधेश कुमार 'अवध' जी की रचनाएँ
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