• चाव पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    कोई छाँव ढूँढ रहा

    हम बैठे घरो मे, कोई छाँव ढूँढ रहा कोई पथिक राह में, वट-वृक्ष ढूँढ रहा। बरस रहे है अंगारे, धरती तप रही भरी दूपहरी में कोई, तन जला रहा। सुख गए पेड सभी, कुछ काट दिए हरियाली का नामो निशान मिट रहा बूँद-बूँद पानी का ,हाहाकार मचा है बादल भी बिन बरसे, गुजर रहा है। [...] More
  • दिल के राज पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    हम अपने दिल का राज

    हम अपने दिल का राज बताये किसे किसे दामन में लगा दाग दिखाये किसे किसे लहरों से खेलता रहा दरिया का दर्दे दिल टूटी है कश्ती और बिठाये किसे किसे खामोश किनारों से न पूछो लगी दिल की आगोश भर न पाये बताये किसे किसे जज्वात की तौहीन पर हंसता है जमाना दर्दे जिगर दिखा [...] More
  • अँधेरे पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    रह न पाये अब अंधेरा

    रह न पाये अब अंधेरा | तोड़ दो तटबन्ध सारे प्रखर हो जाये सवेरा || व्योम की परछाइयाँ जब बादलों में उतर आये क्षितिज की काली घटा जब एक पल में विखर जाये खिड़कियों से झांककर विश्वास का उतरे चितेरा || उभरता पदचिन्ह नभ में खण्डहर सा ठह गया हो ओस पर जैसे किसी ने [...] More
  • दीवाने लोगो पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    कितने अनजाने हैं लोग

    कितने अनजाने हैं लोग | कितने दीवाने हैं लोग || तोड़ सभी सीमा के बन्धन करते हैं सहास अभिनन्दन भीतर कुछ है बाहर कुछ है छल छदमों के ऊपर बन्दन चेहरे सबके पास कई हैं हर छण बदल बदल जाता है घड़ियाली आसू की खेती मन का भाव पिघल जाता है कितने अनजाने हैं लोग [...] More
  • अँधेरे पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    कहीं से रोशनी लाओ

    कहीं से रोशनी लाओ बहुत अंधेरा है यहाँ हर काफिले संग जुगनुओं का डेरा है भाषण की रोटी खाने से पेट किसी का नहीं भरा है आश्वासन की फटी लगोटी देह किसी का नहीं ढका है शतरंजी मोहरे बिछाकर बैठे हैं रहनुमा हमारे जैसे बगुला दम साधे हो ध्यान लगाये नदी किनारे विछाये जाल अन्देखे [...] More
  • मौसम पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    आओ कुछ मनसायन

    आओ कुछ मनसायन कर लो मन का ताप पिघल जायेगा चौराहे पर खड़े बटोही का अभिशाप बदल जायेगा कितनी सदियों से घबराये मौसम की दीवार ढह गयी झंझावातों की फिसलन से माझी की पतवार बह गयी एकाकी घातों प्रतिघातों से जीवन संकल्प टूटता आशाओं का दीप बुझाता साथी का भी साथ छूटता मत घबराओ दुनिया [...] More
  • लक्ष्य पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    इस तरह कब चलेगा

    इस तरह कब चलेगा दर्द सारे चुक गये पतवार बनकर अश्रु सारे झर गये नीहार बनकर यह अकेली साँस कब तक चल सकेगी भाव सारे खो गये मनुहार बनकर पंथ जाने कब रुकेगा इस तरह कब तक चलेगा दूर जीवन लक्ष्य कुछ बीमार लगता स्नेह का बन्धन बहुत लाचार लगता पिघल जाये मोम सा सावन [...] More
  • मधुमास पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    इन्द्रधनुषी रंग से

    इन्द्रधनुषी रंग से तुमने लिखा है तितलियों के पंख पर इतिहास मेरा सांस का पतझार नैनों में समेटे जल रहा है रात भर मधुमास मेरा ये खड़ा आकाश तुमको जानता है और ये सागर तुम्हें पहचानता है एक वकिम नैन से घायल हुआ सिसकता मधुमास तुमको जानता है अब न कोई रागिनी फिर बज सकेगी [...] More
  • मोहब्बत पर कविता, एकता खान

    इश्क़ में खोए लोगों

    इश्क़ में खोए लोगों को दुनियादारी नही दिखती धड़कते दिल को जहां की समझदारी नही दिखती जिनके दिल में नफ़रत और हिंसा ही भरी रहती अम्न की राह में उनकी हिस्सेदारी नही दिखती वतन की शान की ख़ातिर लुटा दे जान भी अपनी युवाओं में अब ऐसी जिम्मेदारी नही दिखती कहते कुछ और करते कुछ [...] More
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