Author Archives: Kavya Jyoti Team

  • बिन मौसम बरसात पर कविता, देवेंद्र कुमार सिंह

    पसरा है मधुमास हमारे आंगन में

    पसरा है मधुमास हमारे आंगन में, विन वादल वरसात हमारे आगन में | पुरुआ ने ली अंगड़ाई मन बहक गया, पपिहे की सुन तान अचानक दहक गया | वौराये आमों का भी मन भींग गया, गाते गाते भौरों का मन बहक गया || बहक गया आकाश हमारे आंगन में, विन बादल वरसात हमारे आंगन में [...] More
  • पक्षी पर कविता, देवेंद्र कुमार सिंह

    गगन तक पसारो विकल पंख ऐ खग

    गगन तक पसारो विकल पंख ऐ खग धरा पर तुम्हें लौट आना पड़ेगा, मधुर कल्पना के सुखद पल बितालो मगर खेत के गीत गाना पड़ेगा ||   विहसती सुवह शाम तारों भरी रात, तेरे लिए एक नूतन कहानी | सजल स्नेह से सिक्त मधु मेह बनकर, नयन में उतरकर छलक जाय पानी ||   उषा [...] More
  • दिल की आवाज पर कविता, देवेंद्र कुमार सिंह

    सुधियों के गलियारे में

    सुधियों के गलियारे में मन भटक गया हो चुपके से आ जाना मेरा मन दर्पण है | एकाकी जीवन का विष उन्माद भरे जब, पलकों में छुप जाना मेरा मन कंचन है || चढ़ी नदी की धार किनारे तोड़ रही हो, सावन के सपनों से नाते जोड़ रही हो | परछाहीं भी जब सिरहाने सिमट-सिमट [...] More
  • चाँद पर कविता, देवेंद्र कुमार सिंह

    ऐ चाँद बड़ा ही मादक है

    ऐ चाँद बड़ा ही मादक है, तेरी आखों का आमंत्रण जैसे सीपी में सिमट उठा हो सागर का उद्वेलित मन || अन्तर के चिन्तन में खोकर तारों का दल चुपचुप सोया साँसों के सरगम पर सधकर जैसे विरहिन का मन रोया उर के अन्दर कुछ महक गया जैसे महका हो चन्दन-वन ऐ चाँद बड़ा ही [...] More
  • संस्कृति पर कविता, देवेंद्र कुमार सिंह

    हमारा वन्दे मातरम्

    हमारा वन्दे मातरम् वासन्ती धरती का आँचल फहरे नील गगन ..... हमारा.... रस की पड़े फुहार अंग अंग बाहर भीतर भींगे सोनजुही कचनार गंध प्रानों को बरवस सीचे काशमीर केसर की क्यारी रूप राशि कंचन.... हमारा सागर इसके चरण पखारे हिमगिरि मुकुट सवारे मुजबन्धों पर अचल छितिज रवि राशि आरती उतारे नदियाँ इसकी मुक्तकेश सी [...] More
  • जीवन में रहे न अँधेरा पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह

    रह न जाये अब अन्धेरा

    रह न जाये अब अन्धेरा तोड़ दो तटबन्ध सारे मुक्त हो जाये सवेरा व्योम की परछाइयाँ जब बादलों से उतर आयें छितिज की काली घटा जब एक पल में बिखर जाये खिड़कियों से झाँककर विश्वास का उतरे चितेरा रह न जाये अब अन्धेरा सिमटकर पदचिन्ह नभ में खण्डहर सा ढह गया हो ओस पर जैसे [...] More
  • देश धर्म पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह

    कविता सरस्वती की कुपा

    कविता सरस्वती की कुपा की अमोघ शक्ति इसमें कृपाण की सी धार होनी चाहिए | छिन्न-भिन्न कर दे कुरीतियों के संस्कार जाति पाँति पर इसे प्रहार होनी चाहिये | ज्ञान का स्फुलिंग देश धर्म का सुधार करे जन-जागरण की पुकार होनी चाहिये | एकता अखण्डता औ समता प्रवाहित हो प्रीति रीति नीति सूत्र-धार होनी चाहिए [...] More
  • देश प्रेम पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह

    लिखना ही चाहते हैं

    लिखना ही चाहते हैं आप छन्द और बन्द पहले तिरंगे की कहानी लिख दीजिये | मातृभूमि वन्दनीय देश अभिनन्दनीय भाव और भाषा की रवानी लिख दीजिये | | दासता की वेड़ियों से मुक्ति में प्रयास रत अनजाने लालों की जवानी लिख दीजिये | चूम लिया फन्दे को गले में जयमाल मान ऐसी बीर बानी क़ुरबानी [...] More
  • स्नेह की थाल में भाव के पुष्प से

    स्नेह की थाल में भाव के पुष्प से जो सजायी गयी है नवल आरती | वन्दना में नमित माथ मेरे सदा और शाश्वत बनी ही रहे भारती || श्वेत वसना मना श्वेत पदमासना बीन के तार से भक्त को तारती मैं निवेदित सुमन सा समर्पित सदा माँ मेरी भारती, भारती, भारती | - देवेन्द्र कुमार [...] More
Updating
  • No products in the cart.