• काव्य ज्योति पर हम्द, शाद उदयपुरी

    नाम लेके तिरा

    नाम लेके तिरा, हम शुरू कर रहे तीरगी में यहाँ, रौशनी भर रहे खूबसूरत बनें, ये ज़मीं आसमां चाहतों से सदा, ये भरा घर रहे महफ़िल चारसू, बस अदब की सजे नाम हरदम तिरा, इन लबों पर रहे सिलसिला प्यार का, जोड़कर वो चलो दर्द से आँख ना, कोइ भी तर रहे काव्य ज्योति से [...] More
  • दर्द का एहसास, शाद उदयपुरी

    लगा दी जिंदगी तुमने

    लगा दी जिंदगी तुमने क्यों ऐसे आज़माने को कोई तुमको ना रोकेगा यूँ मंज़िल अपनी पाने को लुटा रखा है सब अपना जो तूने लक्ष्य पाने को आ गया वक़्त अब तेरा शिखर पे रंग जमाने को बहुत मेहनत किया हर क़दम, पर ये जानते हैं हम दिखाना है उड़ान अब हौसलों की ज़माने को [...] More
  • दर्द भरी ज़िन्दगी पर ग़ज़ल, अज़्म शाकरी

    अपने दुख-दर्द का अफ़्साना

    अपने दुख-दर्द का अफ़्साना बना लाया हूँ एक इक ज़ख़्म को चेहरे पे सजा लाया हूँ देख चेहरे की इबारत को खुरचने के लिए अपने नाख़ुन ज़रा कुछ और बढ़ा लाया हूँ बेवफ़ा लौट के आ देख मिरा जज़्बा-ए-इश्क़ आँसुओं से तिरी तस्वीर बना लाया हूँ मैं ने इक शहर हमेशा के लिए छोड़ दिया [...] More
  • ज़िन्दगी की सच्चाई पर ग़ज़ल, अज़्म शाकरी

    अजीब हालत है

    अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ वो मेरे अंदर उतर गया है मैं ख़ुद से बाहर निकल रहा हूँ बहुत से लोगों में पाँव हो कर भी चलने-फिरने का दम नहीं है मिरे ख़ुदा का करम है मुझ पर मैं अपने पैरों से चल रहा हूँ मैं कितने अशआर लिख के [...] More
  • प्यार भरी मोहब्बत पर ग़ज़ल, अज़्म शाकरी

    अगर दश्त-ए-तलब से

    अगर दश्त-ए-तलब से दश्त-ए-इम्कानी में आ जाते मोहब्बत करने वाले दल परेशानी में आ जाते हिसार-ए-सब्र से जिस रोज़ मैं बाहर निकल आता समुंदर ख़ुद मिरी आँखों की वीरानी में आ जाते अगर साए से जल जाने का इतना ख़ौफ़ था तो फिर सहर होते ही सूरज की निगहबानी में आ जाते जुनूँ की अज़्मतों [...] More
  • इश्क़ मोहब्बत पर ग़ज़ल, अकबर ख़ान ‘शाद’

    इश्क का रंग गहरा यूँ चढ़ता रहा

    इश्क का रंग गहरा यूँ चढ़ता रहा इश्क़ को दिल लगी वो समझता रहा यार मेरा गुलाबों की मानिंद है खूश्बुओं की तरह वो बिखरता रहा इश्क से जिसकी नज़रें सदा थीं भरी उस नज़र को मिरा दिल तरसता रहा ज़ख्म तुमने दिये तुम दवा थी कभी ग़ैर की जो हुई मैं बिखरता रहा आरज़ू [...] More
  • शिकवा पर ग़ज़ल, डॉ. नसीमा निशा

    क्या करें शिकवा उस दिवाने से

    क्या करें शिकवा उस दिवाने से मान जाता है वो मनाने से वो किसी का भी हो नहीं सकता जानती हूँ उसे ज़माने से दर्दे दिल देके हंसता रहता है उसको मतलब है बस रुलाने से यों तो पतझर है मेरी दुनिया में रौनके आती उसके आने से उसकी फ़ितरत मे बेवफ़ाई है फ़ायदा क्या [...] More
  • दिल की तकलीफ पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    रस्में वफ़ा हम ही निबाहते रहें क्या

    रस्में वफ़ा हम ही निबाहते रहें क्या । ये हर दफा तुमको दिखाते रहें क्या । उनको पता है सब उदासी हमारी, दिल में जफ़ा उनकी छुपाते रहें क्या । तुम भी ज़रा कोशिश करो तो वफ़ा की ये फ़लसफ़ा हम ही पढ़ाते रहें क्या । कब दूर की बोलो शिक़ायत दर्द की, होकर ख़फ़ा [...] More
  • शिकवा शिकायत ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    नशेमन का जिगर देखो

    नशेमन का जिगर देखो । बिजलियों में गुज़र देखो । मुसीबत ही मुसीबत है, जहाँ देखो जिधर देखो । रफिक़ों को लड़ा डाला, रक़ीबों का हुनर देखो । हिदायत है बड़े घर की, नहीं चाहो मगर देखो । ग़रीबी ने झुका दी है, लड़कपन की कमर देखो । क़लम स्याही नहीं मिलती, अदीबों का नगर [...] More
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