मैं तुम्हारी जिन्दगी में गीत बनकर क्या करूँगा | साँझ की वरसात के रिमझिम स्वरों का यह तराना, नीड़ में दुबके खगों का प्रेम से कुछ गुनगुनाना | सुघर सावन में वरसते मेघ की चादर पसारे, स्नेह से भीगे नयन की कोर से विरहिन निहारे || मधुर बासन्ती छणों में गीत बनकर क्या करूँगा | [...]
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मैं तुम्हारी जिन्दगी में
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कलियों को जो खिला न पाये
कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा, जाग उठा है देश कि अब इसका इतिहास बदलना होगा || चन्दन वन में पगपग पर फणिधर का हुआ वसेरा, अब गुलाब की टहनी पर कांटो ने डाला डेरा || विष की गन्ध फैलती जाती मैला हुआ समीरन, भौरों का गुन्जार बन्द है कलियों का [...] More -
नागफनी बरगद के नीचे पले
नागफनी बरगद के नीचे पले, चलो चले अब तो बबूल ही भले | भोर की किरन अब विषधर सी डस जाती, घायल मन मछरी जब बरबस ही फँस जाती | छाया के धोखे में हाड तक जले, चलो चले अब तो बबूल ही भले || तपती रेती ही अब जीवन की आशा है, तारों का [...] More -
पसरा है मधुमास हमारे आंगन में
पसरा है मधुमास हमारे आंगन में, विन वादल वरसात हमारे आगन में | पुरुआ ने ली अंगड़ाई मन बहक गया, पपिहे की सुन तान अचानक दहक गया | वौराये आमों का भी मन भींग गया, गाते गाते भौरों का मन बहक गया || बहक गया आकाश हमारे आंगन में, विन बादल वरसात हमारे आंगन में [...] More -
गगन तक पसारो विकल पंख ऐ खग
गगन तक पसारो विकल पंख ऐ खग धरा पर तुम्हें लौट आना पड़ेगा, मधुर कल्पना के सुखद पल बितालो मगर खेत के गीत गाना पड़ेगा || विहसती सुवह शाम तारों भरी रात, तेरे लिए एक नूतन कहानी | सजल स्नेह से सिक्त मधु मेह बनकर, नयन में उतरकर छलक जाय पानी || उषा [...] More -
सुधियों के गलियारे में
सुधियों के गलियारे में मन भटक गया हो चुपके से आ जाना मेरा मन दर्पण है | एकाकी जीवन का विष उन्माद भरे जब, पलकों में छुप जाना मेरा मन कंचन है || चढ़ी नदी की धार किनारे तोड़ रही हो, सावन के सपनों से नाते जोड़ रही हो | परछाहीं भी जब सिरहाने सिमट-सिमट [...] More -
ऐ चाँद बड़ा ही मादक है
ऐ चाँद बड़ा ही मादक है, तेरी आखों का आमंत्रण जैसे सीपी में सिमट उठा हो सागर का उद्वेलित मन || अन्तर के चिन्तन में खोकर तारों का दल चुपचुप सोया साँसों के सरगम पर सधकर जैसे विरहिन का मन रोया उर के अन्दर कुछ महक गया जैसे महका हो चन्दन-वन ऐ चाँद बड़ा ही [...] More -
हमारा वन्दे मातरम्
हमारा वन्दे मातरम् वासन्ती धरती का आँचल फहरे नील गगन ..... हमारा.... रस की पड़े फुहार अंग अंग बाहर भीतर भींगे सोनजुही कचनार गंध प्रानों को बरवस सीचे काशमीर केसर की क्यारी रूप राशि कंचन.... हमारा सागर इसके चरण पखारे हिमगिरि मुकुट सवारे मुजबन्धों पर अचल छितिज रवि राशि आरती उतारे नदियाँ इसकी मुक्तकेश सी [...] More -
रह न जाये अब अन्धेरा
रह न जाये अब अन्धेरा तोड़ दो तटबन्ध सारे मुक्त हो जाये सवेरा व्योम की परछाइयाँ जब बादलों से उतर आयें छितिज की काली घटा जब एक पल में बिखर जाये खिड़कियों से झाँककर विश्वास का उतरे चितेरा रह न जाये अब अन्धेरा सिमटकर पदचिन्ह नभ में खण्डहर सा ढह गया हो ओस पर जैसे [...] More