• प्यार की बात करने पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    दिल के जज़्बात

    दिल के जज़्बात सभी कहने दो दूसरी बात अभी रहने दो थाम लो हाथ हमारा जानम दूरियाँ आज सभी ढहने दो ये ज़माना न कर सकेगा कुछ ये ज़माना जो कहे ने कहने दो जो मिले दर्द जहाँ से तुमको कुछ हमें भी वो दर्द सहने दो जो ग़ज़ल हमने कही तेरे लिए वो ग़ज़ल [...] More
  • वो निशां छोड़

    वो निशां छोड़ चलो ये जहां याद करे मंज़िलें याद करें कारवाँ याद करे गीत ग़ज़लों में बस ताजगी जोश भरो गाके युग युग तक हर समा याद करे सिलसिला खुसबू का वो गुलो छोड़ चलो बिखर जाने पर भी बागबाँ याद करे प्यार मुहब्बत सिखा अमन का चलन सिखा हर कलम दां फिर ये [...] More
  • आज के समय की सचाई पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    आ-मदे फिक्र की रवाँ बेची

    आ-मदे फिक्र की रवाँ बेची शान झूठी रखी अनां बेची वर्क इतिहास के गवाही दें कौनसी चीज़ कब कहाँ बेची जोश रखकर यहाँ खरीदी जो होश खोकर उसे वहाँ बेची क्या मुहाफिज़ कहें उन्हे अपना पेट के वास्ते जबाँ बेची दौर गर्दिश में ये खबर किसको रात कितनी जवाँ-जवाँ बेची कसमें वादे हया वफा उलफत [...] More
  • तू नज़र कुछ तो मिला

    तू नज़र कुछ तो मिला तेरा इशारा चाहिए रूठकर मत जा सनम तेरा सहारा चाहिए आदमी बनकर रहूँगा ये मेरा वादा रहा साथ मुझको ओ सनम केवल तुम्हारा चाहिए चाँदनी बनकर हँसो मेरी ग़ज़ल के शेर में शेर मुझको ओ सनम ऐसा करारा चहिए ज़िन्दगी हँसने लगे ऐसा करूँ मैं काम कुछ देखने को अब [...] More
  • समय के साथ परिवर्तन पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    आदमी को क्या हुआ

    आदमी को क्या हुआ ये कह रहा है आइना लड़ रहे क्यों आदमी ये सोचता है आइना मारता क्यों आदमी को आदमी ही है यहाँ बात ये सारे जहाँ से पूछता है आइना अब शराफ़त की जहाँ में मीत कुछ क़ीमत नहीं ये हक़ीक़त जानकर सब, रो रहा है आइना गाँव की चौपाल भी तो [...] More
  • मौसम के बदलने पर ग़ज़ल, पी एल बामनिया

    अब ये मौसम कातिलाना

    अब ये मौसम कातिलाना हो चुका है दुश्मन का अब शहर आना हो चुका है। तुम खुद को अब मत ढूंढना इस शहर में तेरा इस दिल में ठिकाना हो चुका है। अंधेरों का राज होगा इस धरा पर तारों का तो झिलमिलाना हो चुका है। महफिल मे अब तुम गुनगुनाओ जरा सा इस गम [...] More
  • मतलब बदल रही दुनिया पर ग़ज़ल, विनय साग़र जायसवाल

    भर देंगे सब के दिल में,

    भर देंगे सब के दिल में, हम ताज़गी भी और रँग दी है ख़ुश्बुओं से, यह शायरी भी और उसका ही नाम अब तो, होंटो पे खेलता है जो भर गया जिगर में, ज़िन्दादिली भी और धीरे से महज़बी ने, घूँघट हटा दिया क्या इस दिल में भर गई है, कुछ रौशनी भी और मेरा [...] More
  • बेइंतहा प्यार पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    खिंच लाती है

    खिंच लाती है जुस्तजू तेरी अच्छी लगती है गुफ्तगू तेरी फूल में चाँद में हरेक मंज़र में शक्ल दिखती है हूबहू तेरी मालोज़र क्या है कुछ नहीं ये जहाँ जां से प्यारी है आबरू तेरी तपता सहरा हो या हो ग़म की घटा चैन देती है आरजू तेरी ना हुआ तुझसा और ना होगा खुद [...] More
  • दर्द इ दिल पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    उम्र कुछ इस तरह

    उम्र कुछ इस तरह बिता दी है राख के ढेर को हवा दी है आपका फ़ैसला निराला है ज़िन्दगी बख्श कर सज़ा दी है खूब चारागरी निभाई है आखरी सांस पे दवा दी है डूबने का जहाँ शुबा देखा राह वो ही हमें दिखा दी है इससे ज़्यादा क्या वफ़ा होगी आबरू दाव पर लगा [...] More
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