भर देंगे सब के दिल में, हम ताज़गी भी और रँग दी है ख़ुश्बुओं से, यह शायरी भी और उसका ही नाम अब तो, होंटो पे खेलता है जो भर गया जिगर में, ज़िन्दादिली भी और धीरे से महज़बी ने, घूँघट हटा दिया क्या इस दिल में भर गई है, कुछ रौशनी भी और मेरा हुनर था मैं तो बचकर निकल गया था रस्ते में सोच बैठी, कुछ रहबरी भी और किस-किस को इस शहर में, अपना बना के देखूँ मतलब बदल रही है, अब दोस्ती भी और बोतल गिलास साग़र, उल्टे पड़े हुए हैं माँगे ही जा रही है, तशनालबी भी और शीशे में सोचता हूँ, उनको उतार लूँ मैं देगी सुरूर फिर तो, बादाकशी भी और साग़र हरेक रुख पर, मजबूरियाँ खड़ी है बढ़ती ही जा रही है, बेचारगी भी और – विनय साग़र जायसवाल विनय साग़र जायसवाल जी की ग़ज़ल विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
भर देंगे सब के दिल में,
भर देंगे सब के दिल में, हम ताज़गी भी और
रँग दी है ख़ुश्बुओं से, यह शायरी भी और
उसका ही नाम अब तो, होंटो पे खेलता है
जो भर गया जिगर में, ज़िन्दादिली भी और
धीरे से महज़बी ने, घूँघट हटा दिया क्या
इस दिल में भर गई है, कुछ रौशनी भी और
मेरा हुनर था मैं तो बचकर निकल गया था
रस्ते में सोच बैठी, कुछ रहबरी भी और
किस-किस को इस शहर में, अपना बना के देखूँ
मतलब बदल रही है, अब दोस्ती भी और
बोतल गिलास साग़र, उल्टे पड़े हुए हैं
माँगे ही जा रही है, तशनालबी भी और
शीशे में सोचता हूँ, उनको उतार लूँ मैं
देगी सुरूर फिर तो, बादाकशी भी और
साग़र हरेक रुख पर, मजबूरियाँ खड़ी है
बढ़ती ही जा रही है, बेचारगी भी और
– विनय साग़र जायसवाल
विनय साग़र जायसवाल जी की ग़ज़ल
विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ
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