Author Archives: Kavya Jyoti Team

  • हर न मैंने पर दोहा, जगदीश तिवारी

    जख़्म मिले जग से बहुत

    जख़्म मिले जग से बहुत मानी कभी न हार और कभी तोड़ा नहीं अपनों से व्यवहार करना जो चाहा यहाँ वही किया है काम और कभी सोचा नहीं क्या होगा अन्जाम अपने में साहस जगा बना नई तस्वीर तेरे ही है हाथ में तेरी ये तक़ दीर तेरी धरती में खुदा कोई रहा न नेक [...] More
  • मधुऋतु पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    मैं जीवन के नव प्रभात

    मैं जीवन के नव प्रभात का गीत सुनाता हूँ पतझारों में मधुश्रतु का संगीत सुनाता हूँ | पाषाणों की छाती में सोई सी प्रेम कहानी कहता, खण्डहरों की व्यथा भरी अनदेखी विगत जवानी कहता, बरबस आखों के मोती जब धरती पर उग-उग आते हैं, सपनों के संसार सलोने रजनी भर जगते रहते हैं | छलक [...] More
  • मिलने पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    आज की रात शुभ है

    आज की रात शुभ है मिलन के लिए, कौन जाने कभी हम मिले ना मिलें | यदि मिलें भी कभी ऐसा विश्वास क्या, फूल मन के हमारे खिले ना खिलें | रोशनी मिल गयी है तुम्हें देखकर, मन अंधेरे में मेरा भटकता रहा | दीप मन के हमारे अभी जल रहे, कौन जाने कभी फिर [...] More
  • भाव तो बराबर

    भाव तो बराबर सितम ढा रहे हैं आजकल इसलिए ही ग़म खा रहे हैं परिवहन की बढ़ी दरों की वजह से न तुम आ रहे हो, न हम आ रहे हैं रहे साथ जब तक समझ ना सके हम अब याद तुम्हारे करम आ रहे हैं उनकी हैं पांचो ऊंगली घी में जो हाथों में [...] More
  • धकेला और छूटे

    धकेला और छूटे हुवे को इस हवा ने बिखेरा और टूटे हुवे को इस हवा ने चुरा कर पेड़ पर जो रखा था वो ख़जाना लुटाया खूब लुटे हुवे को इस हवा ने बचा कर एक टूटा हुआ दर्पण रखा था किया है चूर फूटे हुवे को इस हवा ने लगी में और ज्यादा लगाए [...] More
  • गोरी पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    गोरी तेरा मुखडा

    गोरी तेरा मुखडा चाँद सा रे देख के धडके मोरा जिया रे। माथे पर बिंदियाँ ऐसे चमके दामिनि गिरि हो जैसे लगे। रूप तेरा निखारे यह कजरा नैनो का श्रृंगार तेरा दमके। कानो के तेरे लटके झुमके नागिन से लटके -झटके। गले मे पहना मोतियन का हार धीरे-धीरे इधर उधर सरके। जब से पहनी पैरो [...] More
  • लेखनी पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    लेखनी स्वर्ण प्रासादों को

    लेखनी स्वर्ण प्रासादों को खण्डहर बना सकती है, लेखनी ध्वस्त झोपड़ियों में तूफान उगा सकती है | थके हुये पाँवों में जब चेतना उमड़कर आती, लेखनी विश्व के नये ज्ञान की जोत जगा सकती है | लेखनी नहीं, जो अमराई की छाह देख रुक जाये, लेखनी नहीं जो दमन चक्र से भयाक्रान्त झुक जाये सागर [...] More
  • साधों की देहरी

    साधों की देहरी कुआँरी अन छूई है, सपनों की साँस इसे नाँप जाती है | अनचाहे मौसम का तीखापन छूट रहा, रेंग रेंग उम्र चली पोर पोर टूट रहा | बनजारे नैनो के पाव डगमगाये जब, सोन जुही चंपकली काँप-काँप जाती है | साधो की टेहरी............ मौसमी हवावों से पीपल लहरा रहा, जाने क्या बात [...] More
  • अमरपुट पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    शत शत नमन कोटि

    शत शत नमन कोटि अभिनन्दन श्रद्धा भाव सुमन, हे मानस के अमर पूत तुलसी तेरा वन्दन | नव प्रभात नव ज्योति विकीरित मन तम पुंज हरो, जन-जन में रामायण की शुचिता असीम भर दो, खुले मोह के अन्धबन्ध मधु मुकुल कानन | हे मानस के अमरपूत........... आज स्वार्थ की कारा में परमार्थ सिसकता है, हीरे [...] More
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