शत शत नमन कोटि अभिनन्दन श्रद्धा भाव सुमन, हे मानस के अमर पूत तुलसी तेरा वन्दन | नव प्रभात नव ज्योति विकीरित मन तम पुंज हरो, जन-जन में रामायण की शुचिता असीम भर दो, खुले मोह के अन्धबन्ध मधु मुकुल कानन | हे मानस के अमरपूत……….. आज स्वार्थ की कारा में परमार्थ सिसकता है, हीरे के धोखे में हर हाथों में सिकता है, आज लोक संस्कृति “संगम” करता है अभिनन्दन | हे मानस के अमरपूत………. कहाँ आज वह पावन गंगा विश्ववन्घ सीता, कहाँ गये वलराम कृष्ण अर्जुन पावन गीत, सत्य अहिन्सा का निनाद भर जाये गिरि कानन | हे मानस के अमरपूत………. उठे गर्जना एक बार फिर गिर्जा देवालय से, कर्पूरी सुगन्धि फैले हुंकार हिमालय से, पावन प्रतिमा के प्रतीक हे महाभाग तव अर्चन | हे मानस के अमरपूत………. एक बार फिर धन्वा की टंकार राम की बोले, जन-जन-मन में छिपे, पाप-रावण को मार भगाये, एक बार फिर गूंज उठे रामायण का गायन | हे मानस के अमरपूत……….. – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
शत शत नमन कोटि
शत शत नमन कोटि अभिनन्दन श्रद्धा भाव सुमन,
हे मानस के अमर पूत तुलसी तेरा वन्दन |
नव प्रभात नव ज्योति विकीरित मन तम पुंज हरो,
जन-जन में रामायण की शुचिता असीम भर दो,
खुले मोह के अन्धबन्ध मधु मुकुल कानन |
हे मानस के अमरपूत………..
आज स्वार्थ की कारा में परमार्थ सिसकता है,
हीरे के धोखे में हर हाथों में सिकता है,
आज लोक संस्कृति “संगम” करता है अभिनन्दन |
हे मानस के अमरपूत……….
कहाँ आज वह पावन गंगा विश्ववन्घ सीता,
कहाँ गये वलराम कृष्ण अर्जुन पावन गीत,
सत्य अहिन्सा का निनाद भर जाये गिरि कानन |
हे मानस के अमरपूत……….
उठे गर्जना एक बार फिर गिर्जा देवालय से,
कर्पूरी सुगन्धि फैले हुंकार हिमालय से,
पावन प्रतिमा के प्रतीक हे महाभाग तव अर्चन |
हे मानस के अमरपूत……….
एक बार फिर धन्वा की टंकार राम की बोले,
जन-जन-मन में छिपे, पाप-रावण को मार भगाये,
एक बार फिर गूंज उठे रामायण का गायन |
हे मानस के अमरपूत………..
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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