दिन भर की भाग दौड़ के बाद थके हारे पक्षी बेचारे अपने घास-फूस के घोसलों की और लौट रहे हैं मैं देख रहा हूँ थका सूरज आकाश की ऊँचाइयों से उतरकर पश्चिम की ओर लुढ़क सा रहा है जहाँ- रात के थोड़ा पहले ही वह अन्धकार की काली कोठरी में बैठेकर अचानक आँखे मूँद लेगा [...]
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दिन भर की भाग दौड़
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दिल जो तुम से
दिल जो तुम से लगा नहीं होता ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता साथ जो छोड़ तुम चले जाते पास कुछ भी बचा नहीं होता दूरियाँ गर बड़ी नहीं होती दर्द क्या है पता नहीं होता कुछ तो तुमने उसे कहा होगा वरना वो यूँ ख़फा नहीं होता तोड़कर यार रिश्ते अपनों से कोई भी फायदा [...] More -
हर पल की तुम
हर पल की तुम बात न पूछो कैसे गज़री रात न पूछो बाहर सब कुछ सूखा सूखा अंदर की बरसात न पूछो जिसको सुन के पछताओगे तुम मुझसे वो बात न पूछो दुनिया से तो जीत रहा हूँ ख़ुद से ख़ुद की मात न पूछो साहिल पे ही डूब गए वो कैसे थे हालात न [...] More -
आदमी ख़ुद से
आदमी ख़ुद से मिला हो तो ग़ज़ल होती है ख़ुद से गर शिकवा गिला हो तो ग़ज़ल होती है अपने जज़्बात को लफ़्ज़ों में पिरोने वालो डूब कर शे'र कहा हो तो ग़ज़ल होती है - इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की ग़ज़ल इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो [...] More -
उड रहे गुलाल और अबीर
उड रहे गुलाल और अबीर, जश्न जीत का हो रहा है । कोई हारा कोई जीत गया, लोकतंत्र का शंखनाद हो रहा। ओने-पोने दाम बिक गए जो, लोकतंत्र को छलनी कर रहे। दल-बदलूओ की स्वार्थ लोलूपता, राजनिति को मैली कर रहै । जनता भी अपना मत बदल देती देखकर सियासी कुचालो को । भ्रष्ट नेताओ [...] More -
खुबसूरत है जिंदगी
खुबसूरत है जिंदगी बस अपना खयाल कर। रख खुशी का हर पल तसवीर मे ढाल कर।। बसंत के बाद पतझड़ भी आना लाजमी है, खुशियो के बीच मिलते गम का न मलाल कर। इस जहाँ मे हर कदम पर कांटे मिलेंगे, रखना कदम हमेशा ही अपना संभाल कर। इस पल जमी पर, अगले ही पल [...] More -
अब हर डाल पर एक गुलाब होगा
अब हर डाल पर एक गुलाब होगा। आंधियो से अब सारा हिसाब होगा।। जग गए इस बस्ती के सोए हुए लोग, सारा लुटा माल अब दस्तियाब होगा। हर एक वोट की कीमत समझता है, वो वोटों का भिखारी कल नवाब होगा। दफतर मे आर टी आई लगा के देख लो, हर सवाल का घुमा फिरा [...] More -
शहरी आँधी में रमा,
शहरी आँधी में रमा, दूर हो गया गाँव । मीत! कहीं दीखे नहीं, पीपल बरगद छाँव।। पीपल बरगद छाँव, हाय! हुई एक सपना; अपना था रे गाँव, शहर हुआ नहीं अपना। अब जीवन की नाव, हमारी ठहरी ठहरी; कहने को हम मीत, जहाँ में बाबू शहरी।। - जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी के छंद जगदीश [...] More -
अपनापन हँसता नहीं, रोते हैं सम्बन्ध
अपनापन हँसता नहीं, रोते हैं सम्बन्ध । प्रीत-प्यार क बीच में, ये कैसी दुर्गन्ध ।। ये कैसी दुर्गन्ध, समझ में बात न आई; चहुँ-दिश काली रात, समय कैसा ये भाई । सुनो! कहे जगदीश, रखो हिय अपना पावन; नाचेंगे सम्बन्ध, हँसेगा फिर अपनापन ।। - जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी के छंद जगदीश तिवारी जी [...] More