Author Archives: Kavya Jyoti Team

  • इश्क़ मोहब्बत की ग़ज़ल, विनय साग़र जायसवाल

    ऐज़ाज़े-मुहब्बत है

    ऐज़ाज़े-मुहब्बत है या इश्क का अहसाँ है अब तक मेरे हाथों में अपना ही गिरेबाँ है तस्वीर मेरी रख कर मुजरिम सी निगाहों में इक मैं ही परेशाँ क्या वो भी तो परेशाँ है सुन कर भी करोगे क्या तुम मेरी कहानी को हर एक कहानी का बस एक ही उन्वाँ है हो खैर उसी [...] More
  • दर्दे दिल पर ग़ज़ल, विनय साग़र जायसवाल

    रंगत मिलेगी हर सू मेरी ही दास्ताँ की

    रंगत मिलेगी हर सू मेरी ही दास्ताँ की देखेगा जब भी कोई तारीख़ गुलसिताँ की हसरत है इस अदा से देखे वो मेरी जानिब तकती हैं जैसे नज़रें धरती को आसमाँ की बेकैफ़ दर्दे-दिल की तक़दीर कोई देखे आती है पुरसिशों को बारात कहकशाँ की परदेश में ख़ुशी से आये थे हम मगर अब आती [...] More
  • इश्क़ का सफर, एकता खान

    उनकी आँखों में कुछ अपनेपन सी बात थी

    उनकी आँखों में कुछ अपनेपन सी बात थी उन आँखों से दिल तक पहुँचने की चाह थी जिस सफ़र में निकले थे हम साथ उनके न जाने कब अलग हो गए रास्ते उनसे आज भी ढूँढता है दिल कहीं उनके निशाँ डूबना चाहता है उनकी आँखों के समंदर में कहीं - एकता खान एकता खान [...] More
  • ज़िंदगी की बेबसी, एकता खान

    न जाने किस जुस्तजू में

    न जाने किस जुस्तजू में ज़िंदगी ख़ाक किए जाते हैं यादों की अँधेरी राहों में ख़ुद को बर्बाद किए जाते हैं मिलने की आरज़ू में जन्मों का सफ़र तय किए जाते हैं एक वादे की आस में ज़िंदगी ग़म-ए-अश्क़ किए जाते हैं -एकता खान एकता खान जी की वादे की आस में पर कविता एकता [...] More
  • दर्द ए इश्क़ की कविता, एकता खान

    एक बार मरना भी

    एक बार मरना भी, क्या कोई मरना है दूर हो के उनसे, क्या हम ज़िंदा है मौत जब तक हमें नहीं आती हर साँस एक क़ैद परिंदा है आज उनके हम कुछ नहीं लगते जो कभी साँसों में हमें बसाते थे आज भी सांसें तो ज़रूर लेते होंगे बस किसी और को उन में बसाते [...] More
  • मन की बात पर कविता, गोविन्द व्यथित

    मेरे होंठ कड़वा से कड़वा घूंट पीकर भी

    मेरे होंठ कड़वा से कड़वा घूंट पीकर भी शान्ति का नाम लेते हैं | मेरी आँखें सब कुछ देखते हुए भी कुछ न देखने का अभिनय करती हैं | मेरे कान सब कुछ सुनते हैं मगर लगता है जैसे इन्होंने क्छ सुना ही नहीं मेरा चेहरा रहस्यों के तानों-बानों के ऐसे परदे के पीछे छिपा [...] More
  • मोहब्बत की ग़ज़ल, विनय साग़र जायसवाल

    बदलेगी ज़माने की लाज़िम

    बदलेगी ज़माने की लाज़िम ये फ़िज़ा देखो तुम फूल मुहब्बत के कुछ दिल में खिला देखो इस जज़्बे - मुहब्बत का अफ़साना बना देखो तस्वीर मेरी अपने घर में तो सजा देखो नस-नस में मुहब्बत की भर दूगाँ हरारत को इक बार ज़रा मुझसे आँखें तो मिला देखो इस दहर में हर सू ही बहरों [...] More
  • चापलूसी पर कविता, गोविन्द व्यथित

    कहना यह है की……छोड़िये

    कहना यह है की...... छोड़िये चापलूसी, चमचागिरी अलंकारिक भाषणों की नेतागिरी मात्र बातों से काम नहीं चल सकता समस्याओं का पहाड़ नहीं टल सकता कहना यह है कि....... आप कहते हैं आप वायदे निभायेंगे इसी तरह कब तलक बहकायेंगे झूठे सब्ज बागा दिखायेंगे जान लीजिए अब हम जान गये हैं आपकी बातों में न आयेंगे [...] More
  • सूरज की रौशनी पर कविता, गोविन्द व्यथित

    उस रोज उगने के साथ ही

    उस रोज उगने के साथ ही सूरज, अचानक फ्यूज हो गया अपने आस-पास घिरे अंधेरों से तंग आकर मैं ढूँढने लगा सूरज का कोई विकल्प तुम लोग ! इतमिनान रखो कोई न कोई हल निकलेगा जरूर वैसे क्यारियों में बो दिये हैं मैने चाँद और सूरज के बीज बीज पनपेंगे.... पौधे निकलेंगे.... बड़े होंगे, फलेंगे-फूलेंगे [...] More
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