न जाने किस जुस्तजू में ज़िंदगी ख़ाक किए जाते हैं यादों की अँधेरी राहों में ख़ुद को बर्बाद किए जाते हैं मिलने की आरज़ू में जन्मों का सफ़र तय किए जाते हैं एक वादे की आस में ज़िंदगी ग़म-ए-अश्क़ किए जाते हैं –एकता खान एकता खान जी की वादे की आस में पर कविता एकता खान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
न जाने किस जुस्तजू में
न जाने किस जुस्तजू में
ज़िंदगी ख़ाक किए जाते हैं
यादों की अँधेरी राहों में
ख़ुद को बर्बाद किए जाते हैं
मिलने की आरज़ू में
जन्मों का सफ़र तय किए जाते हैं
एक वादे की आस में
ज़िंदगी ग़म-ए-अश्क़ किए जाते हैं
–एकता खान
एकता खान जी की वादे की आस में पर कविता
एकता खान जी की रचनाएँ
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