तन मन धन पर उसका ही राज चले, हर एक मसले में ही दखल देती है। नून तेल लकड़ी में रखे उलझाए नित, पतियों को ठोंक पीट भी बदल देती है। दिल में जो खिले प्रेम पुष्प कभी गलती से, ताने मार झटके से वो मसल देती है। कार्य हो जटिल चाहे कितना रजत किन्तु, [...]
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तन मन धन पर उसका ही राज चले
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ये दिल जैसे जैसे मचलता रहेगा
ये दिल जैसे जैसे मचलता रहेगा वही दर्द ग़ज़लों में ढलता रहेगा ये फ़िरकापरस्ती का आलम जहाँ में कभी ख़त्म होगा या चलता रहेगा कहाँ एकसा कुछ रहा है जहाँ में ये मौसम है प्यारे, बदलता रहेगा कोई बेइमानी नहीं अब चलेगी ये नेकी का सिक्का है चलता रहेगा सिला चाहतो का भले तुम न [...] More -
ज़िन्दगी बेजान है तेरे बिना
ज़िन्दगी बेजान है तेरे बिना कुछ नहीं आसान है तेरे बिना क्या कहें कैसे कहें ए जानेजाँ ज़िन्दगी हलकान है तेरे बिना इश्क न जाने ये कैसा मर्ज़ है खुद से है अनजान ये तेरे बिना भाग जाता है हदो को तोड़ कर दिल बहुत नादान है तेरे बिना थी 'निशा' की शोखियाँ अनमोल सी [...] More -
पावन हिमगिरि उतगं श्रृंग पर
पावन हिमगिरि उतगं श्रृंग पर, धवल हिम अति जमते देखा । जीवन सचिंत निज अंको मे, दिनकर रश्मि चमकते देखा । दिव्य दृश्य अति पावन लौकिक, चॉदी भू को धरते देखा, उष्ण ताप अति तृष्ण अनल से, हिमगिरि हिम पिघलते देखा । चला ठोस अब द्रव रुप धारित, स्वर्ग से थरा उतरते देखा । कोमल [...] More -
जिंदगी मजबूरियो के सांचेे मे ढलती रही
जिंदगी मजबूरियो के सांचे मे ढलती रही, उम्मीद सब हमारी इक खांचे मे डलती रही। मेरे आंगन में भी धूप सुनहरी निकली मगर, साथ मे बादलों की साजिशे भी चलती रही। मेरी गलती की सजा मैं खुद को देता मगर, ये जिंदगी हर दफा अपने बयान बदलती रही। सियासत के इन मुंसिफो पर मैं यकीं [...] More -
तुम चाहो तबेलो को बाजार कह दो
तुम चाहो तबेलो को बाजार कह दो। तुम चाहो पतझडो को बहार कह दो।। तुम्हारा ही राज है अभी यहाँ पर। तुम चाहो तो स्कूटर को कार कह दो।। छुट्टी का दिन बितने लगा यही पर। अपने दफ्तर को तुम घर बार कह दो।। इसी पर मिलने लगी अब हर खबर। अपने मोबाइल को अखबार [...] More -
नदी बन बहती हो ग़ज़ल कुछ ऐसी हो
नदी बन बहती हो ग़ज़ल कुछ ऐसी हो सड़क से निकली हो गली में रहती हो ज़मी पर चलती हो फ़लक पे उड़़ती हो सफ़र में रहती हो ख़बर सब रखती हो इशारों में सब से बहुत कुछ कहती हो ज़माने का सारा दर्द भी सहती हो समन्दर से गहरी समझ जो रखती हो - [...] More -
हमने जब भी भीतर देखा
हमने जब भी भीतर देखा गहरा एक समन्दर देखा जाने कितना प्यारा होगा वो पंछी जिसका पर होगा गहराई में जब भी झाँका सुन्दर सा इक मंजर देखा जब से बाँधा उससे रिश्ता कभी न पीछे मुड़कर देखा दर दर की जब ठोकर खायी तब जाकर उसका दर देखा - जगदीश [...] More -
ऐ रावण कब जलेगा
ऐ रावण कब जलेगा लंकापति रावण ने सीता अपहरण की सजा पाई । राज-पाट सब गँवाया लोक-लाज भी गँवाई । श्रीराम के हाथो दंडित हो ,जान अपनी गँवाई। नारी जाति के स्वाभिमान के लिए श्रीराम आगे आते है। दुष्ट रावण के कुचक्रो से, जानकी को छुडा लाते है । आज न जाने कितनी ही सीताएँ, [...] More