हर नज़र के ख्वाब में तूफान हैं जानते है लोग पर अनजान हैं उन गुलों के वास्ते कर दो दुआ जो बहारे दौर में वीरान हैं जो खरीदें दर्द अपनों के लिये कैसे ये इस दौर के इंसान है यूं मसल कर फेंकना अच्छा नहीं उस कली में भी बसे अरमान हैं - इक़बाल हुसैन [...]
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हर नज़र के ख्वाब
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हर जज़्बे से पहले
हर जज़्बे से पहले, जज़्बाए इन्सानी याद रखो ख़ाक वतन की चूमो, ये ख़ाके लासानी याद रखो अमृत देती नदिया, सोने जैसी धरती, हाथ लगी जन्म नहीं मामूली, ये, ये है वरदानी, याद रखो मत नफरत में उलझों, वक्त है अभी सुलझो, रे सुलझो सब अपने अपने उन, अपनों की कुर्बानी, याद रखो हाथ मिला [...] More -
मयकदे फीके पड़े सब
मयकदे फीके पड़े सब, देखकर आँखे तेरी मयकशों के दर्मियाँ होने लगीं बातें तेरी होंठ खिलते दो कमल से, नैन ठहरी झील से इक सुराही सी हिले है, जब चलें सांसे तेरी क्या खुदा ने हुस्न बख्शा क्या अता की खुशरवी चांद तारे खुद बनाऐं, खुशनुमा रातें तेरी साथ तेरा मिल गया जो, यूं लगा [...] More -
चमक दमक से चाँदी की
चमक दमक से चाँदी की ज़ात छुपे ना बाँदी की हुक्म चलाती है हम पर देखो हिम्मत मांदी की सूखे पीले पत्ते भी हंसी उडाएं आंधी की रिश्ते भूला वो पाकर चार कटोरी चाँदी की - इक़बाल हुसैन "इक़बाल" इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह [...] More -
अपनी जगह से वो
अपनी जगह से वो हटा तो हटा कैसे जाने नहीं था घटना फिर घटा कैसे दुश्मन नहीं था महफिले गैर में जिसका उसका गिरेबां अपनों में फटा कैसे आदत रही ना झुकना यूं कटा माना जो जानता था झुकना वो कटा कैसे पुरवा ना छोडे चलना धूप भी कायम ऐसी जगह छाये काली घटा कैसे [...] More -
किसको दूँ मैं वोट यहाँ पर
किसको दूँ मैं वोट यहाँ पर सबके भीतर खोट यहाँ पर कोई बाँटे बोतल शॉटल कोई फ़ेंके नोट यहाँ पर कोई धोती पगड़ी पहने कोई पहने कोट यहाँ पर अब तक कोई पुल न बना था अब है देखो बोट यहाँ पर जब से आयी तारिख़ वोट की मदिरा औ दा'लमोट यहाँ पर बढियाँ नेता [...] More -
हम जैसे दीवानों
हम जैसे दीवानों से ना उलझो नादानों तूफानों से ना उलझो पराऐ हाथ जलने-बुझने वालो जाओ जी परवानों से ना उलझो सुन लेना ए घाटी गली गुफाओं हम बिखरे दालानो से ना उलझो खैर मनाओ दिन चार गुलों बुलबुलों इन बहके वीरानों से ना उलझो जरदारो से कोई हर्ज़ नहीं है हिम्मत के धनवानों से [...] More -
भाव तो बराबर
भाव तो बराबर सितम ढा रहे हैं आजकल इसलिए ही ग़म खा रहे हैं परिवहन की बढ़ी दरों की वजह से न तुम आ रहे हो, न हम आ रहे हैं रहे साथ जब तक समझ ना सके हम अब याद तुम्हारे करम आ रहे हैं उनकी हैं पांचो ऊंगली घी में जो हाथों में [...] More -
धकेला और छूटे
धकेला और छूटे हुवे को इस हवा ने बिखेरा और टूटे हुवे को इस हवा ने चुरा कर पेड़ पर जो रखा था वो ख़जाना लुटाया खूब लुटे हुवे को इस हवा ने बचा कर एक टूटा हुआ दर्पण रखा था किया है चूर फूटे हुवे को इस हवा ने लगी में और ज्यादा लगाए [...] More