अपनी जगह से वो हटा तो हटा कैसे जाने नहीं था घटना फिर घटा कैसे दुश्मन नहीं था महफिले गैर में जिसका उसका गिरेबां अपनों में फटा कैसे आदत रही ना झुकना यूं कटा माना जो जानता था झुकना वो कटा कैसे पुरवा ना छोडे चलना धूप भी कायम ऐसी जगह छाये काली घटा कैसे उलफत जहां पे कोई जानता ना हो ऐसी जगह नामें मोहब्बत रटा कैसे हैरत हुयी सुनकर तय हुआ वो मरहला मुमकिन ना था जो वो सौदा पटा कैसे – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
अपनी जगह से वो
अपनी जगह से वो हटा तो हटा कैसे
जाने नहीं था घटना फिर घटा कैसे
दुश्मन नहीं था महफिले गैर में जिसका
उसका गिरेबां अपनों में फटा कैसे
आदत रही ना झुकना यूं कटा माना
जो जानता था झुकना वो कटा कैसे
पुरवा ना छोडे चलना धूप भी कायम
ऐसी जगह छाये काली घटा कैसे
उलफत जहां पे कोई जानता ना हो
ऐसी जगह नामें मोहब्बत रटा कैसे
हैरत हुयी सुनकर तय हुआ वो मरहला
मुमकिन ना था जो वो सौदा पटा कैसे
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें