• तबियत कुछ लाजवाब पीना चाहे

    तबियत कुछ लाजवाब पीना चाहे ये क्या खाना खराब पीना चाहे न पैमाना न हद हो मैख़ाने की ये तो बस बे हिसाब पीना चाहे मदहोशी न सुरूर ना बे खबरी दिल जामे इन्कलाब पीना चाहे कोई पहरा कैसे रोके उसको शबनम को गर गुलाब पीना चाहे दुनिया पीती शराब इक मैं ऐसा जिसको कि [...] More
  • उन राहों पे सजदे

    उन राहों पे सजदे सनम होंगे जिन पे तेरे नक्शे कदम होंगे पूछे जो ना मज़हब पता खित्ता जगमग वो ही दैरो हरम होंगे जो दिल में हो मुंह पर वही रखना दूर तब ही ये रंजो अलम होंगे राहे वफा आसान नहीं होगी चलना है तो लाखों सितम होंगे आईने से गर रहोगे बनकर [...] More
  • मुलाक़ात पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    महरबानी हुई बड़ी मुझ पर

    महरबानी हुई बड़ी मुझ पर आपकी जो नज़र पड़ी मुझ पर नज़र भर कर के जो देखा तुमने इस जहां की नज़र गड़ी मुझ पर खत गुलाबो भरे मिले जब से उंगलियाँ हो गयीं खड़ी मुझ पर जब मुलाक़ात का हुआ वादा तो सदी सी चढ़ी घड़ी मुझ पर इक फ़क़त आपकी नवाज़िश से लग [...] More
  • मूंद कर आँख तुम

    मूंद कर आँख तुम भले रखना सोच के दायरे खुले रखना लाख टुकड़े हों घर आंगन के नैन से नैन पर मिले रखना लुत्फ चाहो अगर चे जीने में साँस के साथ मरहले रखना फैज क्या धूप में जलाने से इन चरागों को दिन ढले रखना लोग अहसास से परे हों तो होठ अपने वहाँ [...] More
  • आशिक़ी पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    निकल कर दिल से

    निकल कर दिल से मेरे आप खता पाओगे घर जो ठुकराया तो बाहर न जगाह पाओगे हम तो सह लेगे सभी नाज़ो अन्दाज़ तेरे ग़ैर के साथ न इक रात बिता पाओगे घर की घर में ही रहे बात जहां तक अच्छा बात निकलेगी तो किस किस छुपा पाओगे रात कट जाए ना यूं बातों [...] More
  • छोटी छोटी बात में

    छोटी छोटी बात में बड़ी छुपी हैं बात इनको आत्मसात कर बदलेंगे हालात उसने मानी ही नहीं अपनी गलती आप देख ! तभी तो कर रहा बैठ यहां संताप संभव सब कुछ है यहाँ करता रह प्रयास मंजिल चूमेगी तुझे रख खुद पर विश्वास सच को हिय-आंगन सजा सच से ही कर प्यार खुद आयेगा [...] More
  • विश्वास की बात करने पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    जाने क्यों ना चाँदनी सो

    जाने क्यों ना चाँदनी सो न सकी उस रात चन्दा ने हँसकर करी जब नदिया से बात नभ से बोली चाँदनी ऐसे मुझे न ताक देख लिया गर चाँद ने कट जायेगी नाक आज खड़ी घर द्वार पर गोरी कर श्रृंगार सजन खड़ा हो आड़ से उसको रहा निहार आँख मीच कर रहा सब पर [...] More
  • जग की पहचान पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    कोई छिड़कत रंग तो कोई मटकत अंग

    कोई छिड़कत रंग तो कोई मटकत अंग अपना अपना ढंग है अपना अपना रंग अपने से बहार निकल इस जग को पहचान बात समझ आ जायेगी, तू कितना नादान अन्तस् का पट खोल दे जग करेगा सलाम मन अपना भटका नहीं मन को लगा लगाम मीत समय को देखकर खटकाना तू द्वार भाग जायेगा देखना, [...] More
  • तेरी मेरी प्रीत की चर्चा हर घर दुवार

    तेरी मेरी प्रीत की चर्चा हर घर दुवार अब तो आजा साँवले राधा रही पुकार अन्तस् की किस को कहूँ समझ न आये बात कैसे सुलझेंगें सभी उलझे ये हालात तू सब कुछ है नाव फंसी मंझधार कर दे अब तो साँवले मेरा बेड़ा पार आशाओं के दुवार पर मटक रहा आकाश समय बचा थोड़ा [...] More
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