• सहर के वयवहार पर गीत, जगदीश तिवारी

    गोरा गोरा है बदन

    गोरा गोरा है बदन काले काले बाल ठुमक ठुमक गोरी चले मन में उड़े गुलाल सुबहा तक जागे रहे दोनों सारी रात नयनों से करते रहे अपने दिल की बात मौसम सब्र न कर सका डोल गया ईमान चन्दा की जब चाँदनी भरने लगी उड़ान ये शहर है गाँव नहीं गाँठ बाँध ले यार रिश्ते [...] More
  • इंतज़ार चोर काम करने पर गीत, जगदीश तिवारी

    बड़ी बड़ी ना बात कर

    बड़ी बड़ी ना बात कर और न ऊँची फेंख खींच सके तो खींच दे उससे लम्बी रेख नाच रहा हर आदमी गन्दा हो या नेक वक़्त और हालात के आगे घुटने टेक इन्तज़ार करता नहीं वक़्त किसी का यार हमको करना चाहिए वक़्त का इन्तज़ार उसकी ही होती सदा, भाई! दुआ कबूल सपने में भी [...] More
  • चित्तोर की गाथा पर कविता, जगदीश तिवारी

    लिख गाथा चितौड़ की

    लिख गाथा चितौड़ की कर इसका गुणगान इसके वीरों का ह्रदय से सम्मान पत्रा के उस त्याग का कैसे करूं बखान शब्द नहीं हैं पास में ओ ! मेरे भगवन जिसके वीरों ने सदा दुश्मन दिये निचोड़ आन-मान सम्मान का गढ़ है ये चित्तौड़ जौहर ज्वाला बन गई खींच गई वो रेख बाल न बाँका [...] More
  • कुछ तो अपनी बात कर

    कुछ तो अपनी बात कर कुछ सुन मेरी बात ऐसे ही कट जायेगी अपनी काली रात बस उसकी अरदास कर नहीं बहा यूँ नीर दुख बदली छंट जायेगी थोड़ा तो रख धीर घर - नारी को पीटता, कैसा है इंसान पर नारी को दे रहा देखो ! कितना मान साथ रोज आता यहां पी जाता [...] More
  • ऋतुराज आने पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    प्रेम के देवता ऋतुराज तुम

    प्रेम के देवता ऋतुराज प्रेम के देवता ऋतुराज तुम, लाते हो मोहब्बत की सौगात तुम। झुम उठती है सारी सृष्टी जब, आते हो फुलो पर सवार तुम । प्रेम के देवता ऋतुराज तुम..... कदंब की डाली पर कोयल गाती, गीत प्रेम के मधुर कंठ से गाती । गाती प्रेम के युगल गीत सुरीले जब प्रेम [...] More
  • मानव सेवा पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह

    कलियों को जो खिला न पाये

    कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा, जाग उठा है देश कि अब इसका इतिहास बदलना होगा || चन्दन वन में पगपग पर फणिधर का हुआ वसेरा, अब गुलाब की टहनी पर कांटो ने डाला डेरा || विष की गन्ध फैलती जाती मैला हुआ समीरन, भौरों का गुन्जार बन्द है कलियों का [...] More
  • जीवन की व्यथा पर कविता, देवेंद्र कुमार सिंह

    नागफनी बरगद के नीचे पले

    नागफनी बरगद के नीचे पले, चलो चले अब तो बबूल ही भले | भोर की किरन अब विषधर सी डस जाती, घायल मन मछरी जब बरबस ही फँस जाती | छाया के धोखे में हाड तक जले, चलो चले अब तो बबूल ही भले || तपती रेती ही अब जीवन की आशा है, तारों का [...] More
  • बिन मौसम बरसात पर कविता, देवेंद्र कुमार सिंह

    पसरा है मधुमास हमारे आंगन में

    पसरा है मधुमास हमारे आंगन में, विन वादल वरसात हमारे आगन में | पुरुआ ने ली अंगड़ाई मन बहक गया, पपिहे की सुन तान अचानक दहक गया | वौराये आमों का भी मन भींग गया, गाते गाते भौरों का मन बहक गया || बहक गया आकाश हमारे आंगन में, विन बादल वरसात हमारे आंगन में [...] More
  • पक्षी पर कविता, देवेंद्र कुमार सिंह

    गगन तक पसारो विकल पंख ऐ खग

    गगन तक पसारो विकल पंख ऐ खग धरा पर तुम्हें लौट आना पड़ेगा, मधुर कल्पना के सुखद पल बितालो मगर खेत के गीत गाना पड़ेगा ||   विहसती सुवह शाम तारों भरी रात, तेरे लिए एक नूतन कहानी | सजल स्नेह से सिक्त मधु मेह बनकर, नयन में उतरकर छलक जाय पानी ||   उषा [...] More
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