लूट रहे सब बदल के चेहरा सब अन्धे हैं जग है बहरा रिश्ते नातों की मत पूछो सब छिछले हैं कोई न गहरा जब करते वो तेरा मेरा जीवन लागे ठहरा ठहरा सच के आँगन झूठ हँसे है कौन लगाये इस पे पहरा लूट रहे बाला की इज़्जत मानवता पे दाग़ है गहरा -जगदीश तिवारी [...]
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लूट रहे सब बदल के चेहरा
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कोयल कूके डाल पर
कोयल कूके डाल पर, हँसता फूल पलास। जल्दी आजा साजना, तड़फाये मधुमास।। तड़फाये मधुमास, दवा कुछ कर दे आकर; जागूँ सारी रात, कहूँ दुःख किससे जाकर। करो कृपा "जगदीश" सजन-हिय कर दो कोमल; वो आयें घर-द्वार, डाल पर कूके कोयल।। -जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की वर्षा ऋतू पर कविता जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [...] More -
मैं सदा हँसता रहा हूँ
मैं सदा हँसता रहा हूँ इसलिए ज़िन्दा रहा हूँ हार कैसे मान लूँ मैं आप का चेला रहा हूँ बेवफ़ा बनकर रहे तुम मैं वफ़ा करता रहा हूँ आप से रिश्ता बनाकर आजतक पछता रहा हूँ दुश्मनों की कुछ न पूछो मैं उन्हें खलता रहा हूँ मार डाला था मुझे तो फिर भी मैं ज़िन्दा [...] More -
कुछ तो ऐसा रच नया
कुछ तो ऐसा रच नया, छन्द हँसै हर द्वार कवियों के दरबार से, दूर भगे भंगार छन्दों के दरबार से, जमकर कर तू प्रीत भाई तू ही देखना, द्वार हँसेंगे गीत शब्द शब्द मिलकर करें, छन्दों का निर्माण गीतों के चलते तभी, दूर-दूर तक बाण जो करता है साधना, उसको मिलती जीत वो ही कवि [...] More -
नदी बन बहती हो ग़ज़ल कुछ ऐसी हो
नदी बन बहती हो ग़ज़ल कुछ ऐसी हो सड़क से निकली हो गली में रहती हो ज़मी पर चलती हो फ़लक पे उड़़ती हो सफ़र में रहती हो ख़बर सब रखती हो इशारों में सब से बहुत कुछ कहती हो ज़माने का सारा दर्द भी सहती हो समन्दर से गहरी समझ जो रखती हो - [...] More -
हमने जब भी भीतर देखा
हमने जब भी भीतर देखा गहरा एक समन्दर देखा जाने कितना प्यारा होगा वो पंछी जिसका पर होगा गहराई में जब भी झाँका सुन्दर सा इक मंजर देखा जब से बाँधा उससे रिश्ता कभी न पीछे मुड़कर देखा दर दर की जब ठोकर खायी तब जाकर उसका दर देखा - जगदीश [...] More -
कौन किसकी मानता है अब यहाँ पर
कौन किसकी मानता है अब यहाँ पर वक़्त कैसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर आज अपनों को दग़ा दे इस तरह वो देख उड़ना चाहता है आसमाँ पर हो गये कमजोर देखो किस तरह वो तीर भी लगता नहीं जिनसे निशाँ पर जो कभी सूखी पड़ी थी देख लो अब वो नदी कैसी यहाँ अपने [...] More -
आज फिर में गुनगुनाना चाहता हूँ
आज फिर में गुनगुनाना चाहता हूँ हर क़दम पे मुस्कराना चाहता हूँ ऐ अंधेरे तू यहाँ से भाग जा अब रौशनी को घर बुलाना चहता हूँ पर लगा दे ऐ ख़ुदा तू आज मेरे आसमां पे फड़फड़ाना चाहता हूँ आज जो आतंक फैला देश में है मैं उसे जड़ से मिटाना चाहता हूँ भेद देते [...] More -
प्यार की जो फ़सल बो गए
प्यार की जो फ़सल बो गए आदमी वो किधर को गए फूल ही फूल थे सब यहाँ कौन काँटे इधर बो गए हम कहें अब किसे आदमी आदमी तो असल खो गए देख बदलाव कैसा हुआ गाँव भी अब शहर हो गए जो कभी थे हमारा जिगर ग़ैर के हमसफ़र हो गए बाद मुद्दत के [...] More