Author Archives: Kavya Jyoti Team

  • महंगाई पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    घर सभी दुकान हो गये

    घर सभी दुकान हो गये लोग बेमकान हो गये जो किये थे उन पर कभी ग़ारत अहसान हो गये वो दिये हमने इम्तहां लोग परेशान हो गये वक़्त ने किया वो मज़ाक खुद से अंजान हो गये महंगाई हद से बढ़ गई आफत मेहमान हो गये एक झोंका ही बस चला ढेर सब मचान हो [...] More
  • तुम लाख दूर जाओ

    तुम लाख दूर जाओ मगर कुछ भी नहीं होना हम दोनो साथ रहने की ख़ातिर हुए हैं पैदा हसरत नहीं हैं मुझको कि महलों में हो ठिकाना ये आसमाँ चादर हैं मेरी ये ज़मी बिछौना पैसे कमाने के लिये क्या क्या पड़ा है खोना देखूँ मैं पीछे मुड़ के तो आता हैं मुझको रोना समझा [...] More
  • ख़त जो मिला किसी का

    ख़त जो मिला किसी का मुकद्दर संवर गया दौरे खिजां में घर मेरा फूलों से भर गया जो डर गया उसे ये समंदर निगल गया साहिल मिला उसे जो भंवर में उतर गया वो बेवफ़ा नहीं था हर इल्ज़ाम झूठ था पर आबरू रखे था ग़ैरत से मर गया ताले लगा रहे थे देखकर सभी [...] More
  • धनी पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    बात क्या-क्या सुनी

    बात क्या-क्या सुनी आपको क्या पता जान पे आ बनी आपको क्या पता नींद को ले गयी आंख से छीन कर रात की दुश्मनी आपको क्या पता हो गये हैं ख़फा ये जमीं आसमां दोस्तों से ठनी आपको क्या पता आप काली घटा ना बने हम मगर बन गये मोरनी आपको क्या पता देखते दखते [...] More
  • भाई जूते चल रहे

    भाई जूते चल रहे, आपस में ही यार। आपस में ही कर रहे, इक दूजे पर वार।। इक दूजे पर वार, यार योगी घबराया। इस नाटक को देख, विरोधी मुस्काया।। देख कहे 'जगदीश' करो न ऐसे लड़ाई। राहुल तो है आज,बहुत ही गदगद भाई। - जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की छन्द जगदीश तिवारी जी [...] More
  • शायरी में पुख्तगी गर चाहिये

    शायरी में पुख्तगी गर चाहिये सिर्फ अष्कों का समंदर चाहिये इस जहां को सच सुनाना हो अगर हाथ में हर वक़्त पत्थर चाहिये हौसलों को आज़माने के लिए दुश्मनों के सामने घर चाहिये सुधर जाएगा बिगड़ा निजाम सब बस हथेली पे रखा सर चाहिये बे वजह बरसों की नहीं जुस्तजू उम्र कम हो पर बा [...] More
  • समझने पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    आंखों में बसना ठीक नहीं

    आंखों में बसना ठीक नहीं ख्वाबों में मिलना ठीक नहीं आओं तो तुम दिन में आओं रातों में मिलना ठीक नहीं समझाया कितनी बार तुझे कांटों पे चलना ठीक नहीं आग, आग है लग जाएगी दामन में भरना ठीक नहीं त्यौरी में डाला बल बोले आ जाना वरना ठीक नहीं हो जाओगे बेकार कहीं यूं [...] More
  • बदलते नज़रो पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    बदला हुआ समां है

    बदला हुआ समां है बदले हुए नज़ारे बेगाने हो गये वो कल तक जो थे हमारे मायूस ज़िन्दगी के अरमां हुए हमारे तूफा में मेरी नैया और दूर है किनारे इस बेबसी में या रब किसको कहें हम अपना कोई नहीं हमारा अब तो सिवा तुम्हारे कल तक जो यार हमपे दिलोजान से फ़िदा थे [...] More
  • अहदे वफ़ा समझकर

    अहदे वफ़ा समझकर आना हमारे पास ये फलसफा समझकर आना हमारे पास ये रौनक ए जमाना ये उम्र की खुमारी सब बेवफा समझकर आना हमारे पास सौदाए इश्क यूं भी बिल्कुल अजीब शय है घाटा नफ़ा समझकर आना हमारे पास देखी हैं सिर्फ तुमने अब तक मुरव्वतें ही अब हैं खफ़ा समझकर आना हमारे पास [...] More
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