शायरी में पुख्तगी गर चाहिये सिर्फ अष्कों का समंदर चाहिये इस जहां को सच सुनाना हो अगर हाथ में हर वक़्त पत्थर चाहिये हौसलों को आज़माने के लिए दुश्मनों के सामने घर चाहिये सुधर जाएगा बिगड़ा निजाम सब बस हथेली पे रखा सर चाहिये बे वजह बरसों की नहीं जुस्तजू उम्र कम हो पर बा हुनर चाहिए – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
शायरी में पुख्तगी गर चाहिये
शायरी में पुख्तगी गर चाहिये
सिर्फ अष्कों का समंदर चाहिये
इस जहां को सच सुनाना हो अगर
हाथ में हर वक़्त पत्थर चाहिये
हौसलों को आज़माने के लिए
दुश्मनों के सामने घर चाहिये
सुधर जाएगा बिगड़ा निजाम सब
बस हथेली पे रखा सर चाहिये
बे वजह बरसों की नहीं जुस्तजू
उम्र कम हो पर बा हुनर चाहिए
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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