जो दिखाई देता हूं वो नहीं हूं मैं और ना ही वो हूं जो तुम देखते हो तुम्हारे देखने मेरे नज़र आने के बीच जो अब तक नहीं देखा गया ना ही सुना गया हां... मैं वही हूं और तुम... - इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की कविता इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर [...]
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जो दिखाई देता हूं
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जब साथ-साथ है
जब साथ-साथ है हम-तुम, तो क्यो आए कभी कोई गम। एक-दूजे के साथ रहे उम्र भर, यही एक अहसास रहे हर दम। जिंदगी की कठिन डगर पर हम, ले हाथो मे हाथ संग चले हम। मिलकर करे सामना मुश्किलो का, जंग जिंदगी की भी जीत जाए हम। जो साथ होते हो मेरे प्रिय तुम हो [...] More -
खिंच लाती है
खिंच लाती है जुस्तजू तेरी अच्छी लगती है गुफ्तगू तेरी फूल में चाँद में हरेक मंज़र में शक्ल दिखती है हूबहू तेरी मालोज़र क्या है कुछ नहीं ये जहाँ जां से प्यारी है आबरू तेरी तपता सहरा हो या हो ग़म की घटा चैन देती है आरजू तेरी ना हुआ तुझसा और ना होगा खुद [...] More -
आख़िरी बार कब
आख़िरी बार कब देखा था तुमने उसे या फिर उसने तुम्हें ठीक से सोच कर बताओ अगर नहीं मालूम तो पूछ लेना उसे वह सब याद रखता है मुस्कराता चेहरा हो या रोता हुआ खुद से नाराजगी हो या किसी और से मौसम की मार हो या किसी की याद उसे देखोगे तो याद आ [...] More -
सपनों को आकाश दे,
सपनों को आकाश दे, रिश्तों को नव-सांस मीत! कभी टूटे नहीं, अपनों का विश्वास महंगाई हर दुवार पर चला रही तलवार हर व्यक्ति घायल हुआ, खाकर इसकी मार पल दो पल की ज़िन्दगी ओ! भोले इन्सान कल का तुझे पता नहीं जोड़ रहा सामान कुछ भी तो ना कर सका मैं उसका सत्कार मुझको जो [...] More -
फिसलन ही फिसलन यहां,
फिसलन ही फिसलन यहां, फिसल रहा इंसान कीचड़ में सनकर यहां भूल रहा ईमान भोर हुई किरणें हँसें, पंछी गायें गान अब तो उठ जा बांवरे, मत सो चादर तान कोयल कूके डाल पर भंवर करे गुंजार पीली सरसों हँस रही हँसे बसन्त बहार आदमी ने बदल लिया, जब जीने का ढंग फीका फीका सा [...] More -
उम्र कुछ इस तरह
उम्र कुछ इस तरह बिता दी है राख के ढेर को हवा दी है आपका फ़ैसला निराला है ज़िन्दगी बख्श कर सज़ा दी है खूब चारागरी निभाई है आखरी सांस पे दवा दी है डूबने का जहाँ शुबा देखा राह वो ही हमें दिखा दी है इससे ज़्यादा क्या वफ़ा होगी आबरू दाव पर लगा [...] More -
गुज़र गई ग़फ़लत में
गुज़र गई ग़फ़लत में सांसों के आने-जाने के बीच झूलता रहा बिखरता रहा तेरे ख़याल की आंधी में और तू देखती रही मेरा तमाशा हर दौर में ज़िन्दगी तू भी तो मुकम्मल नहीं मेरे बग़ैर | - इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की कविता इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद [...] More -
भीतर उठते भाव को
भीतर उठते भाव को माँ दे दे आकार कविता बनकर वो हँसे, जग के हरे विकार धो माँ! मेरे पाप सब, मुझे बना इन्सान अन्तस् में भर ज्ञान वो, जिससे में अनजान माँ! से रिश्ता जोड़ ले, माँ से कर अनुराग माँ! कृपा जिस पर हुई, उसके जागे भाग एक बार तो बांध ले, माँ! [...] More