• मतलब पर दोहा, जगदीश तिवारी

    मैं धरती बनकर रहूँ

    मैं धरती बनकर रहूँ तू बन जा आकाश तेरे मेरे बीच में बनी रहे इक प्यास ठुमक ठुमक गोरी चले ताक रहा कचनार कलियाँ खिलकर हँस रहीं भंवर करें गुंजार भीतर भीतर जल रही तड़फे हिय-गुलनार आजा अब तो साजना फागुन के दिन चार मटक मटक गोरी चली होरी खेलन देख नयन सजन से क्या [...] More
  • विश्वास पर दोहा, जगदीश तिवारी

    फागुन में उड़ने लगा

    फागुन में उड़ने लगा सजना लाल गुलाल दूर खड़ा क्यों पास आ मुखड़ा कर दे लाल फागुन के इस रंग में गोरी भीगी यार गोरी का यौवन हँसा नाच रहा संसार कुछ ऐसी बातें करो जिनमें कुछ हो सार जो अपनों के कर सके सपने कुछ साकार खोले रखना तुम सनम ! अपने घर का [...] More
  • करने को तो कर गया

    करने को तो कर गया सबसे दो दो हाथ भाई ! अब तू चाहता सब दें तेरा साथ दुर्गुण सारे छोड़ दे सदगुण से कर प्यार रब आयेगा देखना चलकर तेरे दवार साथ उसका दिया नहीं समय पड़ा जब मीत अब तू उससे चाहता तेरे गाये गीत दूर न जा कुछ पास आ कर ले [...] More
  • भरस्टाचार पर दोहा, जगदीश तिवारी

    दो पंक्ति में ही करे

    दो पंक्ति में ही करे दोहा अपनी बात पोल सभी की खोलता देता सबको मात शब्दों से अनुबन्ध कर मीत रचो नव छन्द छन्द गति बढ़ती रहे कभी न हो ये मन्द उगता सूरज बन हँसा जब तक वो इन्सान आव भगत सबने करी दिया सभी ने मान टूट रहे अनुबन्ध सब भटक रहे सम्बन्ध [...] More
  • फेकने पर दोहा, जगदीश तिवारी

    भाई इतनी फेंक मत

    भाई इतनी फेंक मत, मत दिखला तू जात जो गरजे बरसे नहीं जग जाने ये बात ढाल ज़रा खुद को सनम ! जीवन के अनुसार हो जायेंगे सपन सनम ! सब तेरे गुलज़ार दोहो ने जब से किया इस हिय का श्रृंगार कवियों के दरबार का बन गया मैं गलहार हार गया मतदान वो घूम [...] More
  • मधुमास पर दोहा, जगदीश तिवारी

    पंछी कलरव कर रहे

    पंछी कलरव कर रहे भंवर करें गुंजार कूक रही कोयल सनम ! भटकाये कचनार मेरे हिय आँगन हँसे जब जब ये मधुमास तेरी चाहत की सनम ! बढ़ती जाती प्यास कभी कुनकुनी धूप में खुद को कर आबाद बाँह पकड़ मधुमास की कर उससे संवाद मधुमय जीवन हो गया जब आया मधुमास देख धरा को [...] More
  • विश्वास पर दोहा, जगदीश तिवारी

    बाधा से घबरा नहीं

    बाधा से घबरा नहीं करता रह प्रयास मन में रख विष्वास तू रच देगा इतिहास अपने बल पर वो बड़ा उसने पायी ठोर तू काहे को जल रहा काहे करता शोर शाम हुई पंछी गये अपने अपने नीड़ नीड़ बना जिस चीड़ पर भाग्यवान वो चीड़ कदम कदम पर झूठ का लगा हुआ दरबार अपनी [...] More
  • माँ पर दोहा, जगदीश तिवारी

    मातृ दिवस पर माँ पर चन्द दोहे

    माँ आँगन की धूप है, माँ आँगन की छाँव माँ ही तो खेती सनम! घर आँगन की नाव कैसे कैसे दुःख सहे, माने कभी न हार माँ की ममता का नहीं, भाई कोई पार यादें माँ की आज भी, डाले एक पड़ाव ममता के अहसास का, जिसमें बहे बहाव माँ है तो संवेदना, जीवित है [...] More
  • स्वारथ के आँगन बसा

    स्वारथ के आँगन बसा जब से ये इन्सान भूल गया व्यक्तित्व की अपनी वो पहचान बड़ा आदमी क्या बना बदली उसकी चाल अब उसके आँगन लगे चमचों की चौपाल सोच समझ कर चाल चल पूरा रख तू ध्यान कौन यहाँ अपना सनम रख इसकी पहचान कुछ सपने लेकर चला जीवन भर मैं साथ कर न [...] More
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