Tag Archives: हेमलता पालीवाल ‘हेमा’

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  • मर्यादा और लाज रखने पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    घर की लाज

    घर की लाज दहलीज के भीतर, मर्यादा और लाज रखना इधर। इसको लांघ दु:ख पाया जानकी ने प्रिय-विछोह हो और जाए तो किधर। बाबुल की इज्जत है बेटी प्यारी, दहलीज मे ही है लाज हमारी। मर्यादा की यह लक्षमण रेखा है, इसका मान रखे सदैव सती नारी। सीता ने लक्षमण रेखा जब लांघी, आई उस [...] More
  • जब साथ-साथ है

    जब साथ-साथ है हम-तुम, तो क्यो आए कभी कोई गम। एक-दूजे के साथ रहे उम्र भर, यही एक अहसास रहे हर दम। जिंदगी की कठिन डगर पर हम, ले हाथो मे हाथ संग चले हम। मिलकर करे सामना मुश्किलो का, जंग जिंदगी की भी जीत जाए हम। जो साथ होते हो मेरे प्रिय तुम हो [...] More
  • सर्दी के मर पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    तन पर लपेटे

    तन पर लपेटे फटे चिथडे़, नँगे-पैर वह चला जाता है। जाडे़ की बेदर्द हवाओ से वह, अपना बदन छिपाता जाता है। नही माँगता सूरज से धूप, वह तो छिप गया बादलो की ओट। कोहरे की काली-घनी चादर में, ढूँढ रहा कोई फटा पूराना कोट। देखकर सूरज की ओर वह, सेंक रहा वह अपनी काली-काया। मदम-मदम [...] More
  • सुहागन की कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    गीत-चँदा ओ चँदा

    गीत - चँदा ओ चँदा गीत - चँदा ओ चँदा चँदा ओ चँदा, देर न करना, संग चाँदनी के, दर्शन देना । निर्जल रहकर व्रत रखूँ मै, सखियो संग बाट जोऊ मै अखण्ड सुहागन का वर देना संग चाँदनी के, दर्शन देना। माँग मे टीका और सिंदूर, बनूँ मै दूल्हन यही दस्तूर । अमर रहे [...] More
  • नारी के शोषण पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    उम्र का तकाजा भी न रहा

    उम्र का तकाजा भी न रहा, अपने ओहदे का लिहाज न रहा। देखे पराई नार छुप-छुपकर वो, क्या तुझे खुदा का खौंफ भी न रहा। औरत कोई जिस्म का खिलौना नही, वासना व कामुकता का पिटारा नही। कमनीय नजर से तु दीदार न कर, तेरी दृष्टी मे वो लज्जो-हया नही। खुदा की रची सुन्दर तस्वीर [...] More
  • हर जगह रावण, हेमलता पालीवाल " हेमा"

    ऐ रावण कब जलेगा

    ऐ रावण कब जलेगा लंकापति रावण ने सीता अपहरण की सजा पाई । राज-पाट सब गँवाया लोक-लाज भी गँवाई । श्रीराम के हाथो दंडित हो ,जान अपनी गँवाई। नारी जाति के स्वाभिमान के लिए श्रीराम आगे आते है। दुष्ट रावण के कुचक्रो से, जानकी को छुडा लाते है । आज न जाने कितनी ही सीताएँ, [...] More
  • नारी शोषण पर कविता, हेमलता पालीवाल

    सुख-समृद्धी की कामना लिए

    सुख-समृद्धी की कामना लिए जलाओ तुम माटी के नन्हे दीए। देवी को सज-धज कर, पूजा करे वो देश नारी उत्पीड़ित क्यूँ रहे। नव-दिन खूब भक्ति-भाव रख पूरी श्रद्धा से व्रत-उपवास रखे। देवी को प्रसन्न करने, सारे जतन करे, उस देश में नारी क्यूँ, यातना सहे। घर-घर होती घट-स्थापना , पूजा-अर्चना, आरती खूब होती। लगते भोग-व्यंजन [...] More
  • हेमलता जी की अंधकार मिटाने पर कविता

    उनके घर भी दीया जले

    जगमग होगी रातें सारी, दीपमालिका सज जाएगी। ऊँची-ऊँची अटालिकाएँ, रोशनी में खूब सज जाएगी। तब धरती के किसी कोने में, तम का पसरा अँधियारा हो, माटी का एक दीपक उठा के वहाँ तुम जला कर रख देना, हाँ एक दीया तुम जला देना। जब त्योहारों पर बने पकवान, सज-धज जाएँ सारी दुकान। मुँह मीठा करके [...] More
  • देश की आजादी पर कविता

    मेरे देश की आजादी

    मेरे देश की आजादी, अद्धभुखी, प्यासी। निढाल, थकी सी। पेट के खातिर बेच रही, हाथो में ले तिरंगा। नही जानती तिरंगे को, जश्न आजादी देश मना रहा। 72वें वर्ष की आजादी, चिथड़ों में लपेटा तन, नंगे पैर दौड़ रही है। खुले आसमान की छत, सड़क बन गई बिछौना। चंद तिरंगे बेच रही, उसके लिए आजादी [...] More
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