घर की लाज दहलीज के भीतर,
मर्यादा और लाज रखना इधर।
इसको लांघ दु:ख पाया जानकी ने
प्रिय-विछोह हो और जाए तो किधर।
बाबुल की इज्जत है बेटी प्यारी,
दहलीज मे ही है लाज हमारी।
मर्यादा की यह लक्षमण रेखा है,
इसका मान रखे सदैव सती नारी।
सीता ने लक्षमण रेखा जब लांघी,
आई उस पर मुसीबतो की आंधी।
दुष्ट दशानन की कुदृष्टी जब पडी,
हो गई जानकी राम बिना आधी ।
बिन सोचे समझे आज की नारी,
लांघ जाती है मर्यादा वो सारी।
माँ-बाप, कुल परिवार का मान,
और मिट जाती गरिमा व लाज हमारी।
दहलीज का रखना सदा ही मान,
यही है संस्कारो की हमारी पहचान।
लक्षमण रेखा है यह संस्कारो की,
दो कुलो की बंधी है इसमे आन।
घर की लाज
घर की लाज दहलीज के भीतर,
मर्यादा और लाज रखना इधर।
इसको लांघ दु:ख पाया जानकी ने
प्रिय-विछोह हो और जाए तो किधर।
बाबुल की इज्जत है बेटी प्यारी,
दहलीज मे ही है लाज हमारी।
मर्यादा की यह लक्षमण रेखा है,
इसका मान रखे सदैव सती नारी।
सीता ने लक्षमण रेखा जब लांघी,
आई उस पर मुसीबतो की आंधी।
दुष्ट दशानन की कुदृष्टी जब पडी,
हो गई जानकी राम बिना आधी ।
बिन सोचे समझे आज की नारी,
लांघ जाती है मर्यादा वो सारी।
माँ-बाप, कुल परिवार का मान,
और मिट जाती गरिमा व लाज हमारी।
दहलीज का रखना सदा ही मान,
यही है संस्कारो की हमारी पहचान।
लक्षमण रेखा है यह संस्कारो की,
दो कुलो की बंधी है इसमे आन।
– हेमलता पालीवाल “हेमा”
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की कविता
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ
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