प्रतिमा विशाल यदि बनी सरदार की जो,
वामी पीडी छाती पीट करते विलाप क्यों।
एक परिवार के ही नाम सारी योजनाएं,
करते हैं दिन रात उनके ही जाप क्यों।
खण्ड खण्ड में विभक्त सूबों को वो जोड़ गए,
मान उन्हें दे सके न आज तक आप क्यों।
भारत की शान लौह पुरुष हैं रजत वो,
करके विवाद धरा व्योम रहे नाप क्यों।।
प्रतिमा विशाल यदि
प्रतिमा विशाल यदि बनी सरदार की जो,
वामी पीडी छाती पीट करते विलाप क्यों।
एक परिवार के ही नाम सारी योजनाएं,
करते हैं दिन रात उनके ही जाप क्यों।
खण्ड खण्ड में विभक्त सूबों को वो जोड़ गए,
मान उन्हें दे सके न आज तक आप क्यों।
भारत की शान लौह पुरुष हैं रजत वो,
करके विवाद धरा व्योम रहे नाप क्यों।।
– अवधेश कुमार ‘रजत’
अवधेश कुमार 'रजत' जी की कविता
अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ
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