छोटा कद पर सोच बड़ी थी तेज सूर्य का चमके भाल। भारत माँ के गौरव थे वो कहलाये गुदड़ी के लाल।। कुर्ता धोती गाँधी टोपी यही रही उनकी पहचान। सादा जीवन सदा बिताए कौन यहाँ उनसे अनजान।। पले गरीबी में वो लेकिन नई बनाई अपनी राह। मिली चुनौती पग पग उनको रहे मगर वो बेपरवाह।। [...]
More
-
लाल बहादुर शास्त्री जी पर कविता
-
नयनों में आपके ही डूब हम जीने लगे
नयनों में आपके ही डूब हम जीने लगे, मदहोशी दुनिया की पीछे छोड़ आये हैं। जीत हार का कोई सताए अब भय नहीं, भीड़ भरी राहों से कदम मोड़ आये हैं। कंचन सी काया मतवाली चाल देख प्रिय, व्यर्थ के नज़ारों का वहम तोड़ आये हैं। खींच नहीं तोड़ियेगा झटके से कभी अब, नेह डोर [...] More -
मेरे देश की आजादी
मेरे देश की आजादी, अद्धभुखी, प्यासी। निढाल, थकी सी। पेट के खातिर बेच रही, हाथो में ले तिरंगा। नही जानती तिरंगे को, जश्न आजादी देश मना रहा। 72वें वर्ष की आजादी, चिथड़ों में लपेटा तन, नंगे पैर दौड़ रही है। खुले आसमान की छत, सड़क बन गई बिछौना। चंद तिरंगे बेच रही, उसके लिए आजादी [...] More -
भ्रष्टाचार की काली कहानी हूँ मैं
भ्रष्टाचार की काली कहानी हूँ मैं, दर-दर फटती, वो सड़क हूँ मैं। गड्डे, मेरा बदन चीर-चीर देते, ऐसी बदनसीब सड़क हूँ मैं। - हेमलता पालीवाल 'हेमा' हेमलता पालीवाल 'हेमा' जी की कविता हेमलता पालीवाल 'हेमा' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें More -
कौन किसकी मानता है अब यहाँ पर
कौन किसकी मानता है अब यहाँ पर वक़्त कैसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर आज अपनों को दग़ा दे इस तरह वो देख उड़ना चाहता है आसमाँ पर हो गये कमजोर देखो किस तरह वो तीर भी लगता नहीं जिनसे निशाँ पर जो कभी सूखी पड़ी थी देख लो अब वो नदी कैसी यहाँ अपने [...] More -
आज फिर में गुनगुनाना चाहता हूँ
आज फिर में गुनगुनाना चाहता हूँ हर क़दम पे मुस्कराना चाहता हूँ ऐ अंधेरे तू यहाँ से भाग जा अब रौशनी को घर बुलाना चहता हूँ पर लगा दे ऐ ख़ुदा तू आज मेरे आसमां पे फड़फड़ाना चाहता हूँ आज जो आतंक फैला देश में है मैं उसे जड़ से मिटाना चाहता हूँ भेद देते [...] More -
हाँ अहसास है मुझे कि आसपास हो तुम
हाँ अहसास है मुझे कि आसपास हो तुम, हाँ, इकरार है मुझे कि कुछ खास हो तुम। ज़िन्दगी की भागमभाग में, एक सुकून भरा विश्राम हो तुम। थक कर चूर हुई निढाल सी दोपहर में, ठंडी झोपड़ी सा आराम हो तुम। हा यक़ीन है मुझे मेरी चाहत हो तुम, हाँ, भरोसा है मुझे मेरी राहत [...] More -
बनना चाहती हूँ
तेरी कहानी का बस एक, किरदार बनना चाहती हूँ, तुझे बेइंतहा चाह कर, फिर गुनहगार बनना चाहती हूँ। मालूम है, तुझे गवांरा नहीं , मेरा साथ ज़रा दूर तलक भी, तेरे दामन का नहीं, तेरे साये का हक़दार बनना चाहती हूँ। माना कि मुझे भुला देगा तू, बस एक किस्सा समझ कर, पर फिर भी, [...] More -
रामा चला गया
रामा चला गया.. अपने परिवार की याद में घुटकर, चेन्नई से यहाँ के संक्रमण में , उसका पशु मन नहीं कर पाया सामंजस्य, वो मूक समझ न पाया, बदले भौतिक परिवेश में, नए देखभाल कर्मियों के नए संकेत। चिड़ियाघर अब जैविक उद्यान हो गए हैं, जहाँ तर्कयुक्त बंधी हुईं आजादी है, खुले आसमां के जिल्द [...] More