इस चमन की सुमन खिलते रहें सुख दुःख में हम मिलते रहें लाख कोशिश करे हमें तोड़ने की हम जुड़े हुवे हम जुड़ते रहें इंद्रधनुषी रंग छाते रहें खुशियों के गीत गाते रहें लहू के रंग फैलायें न कोई हम जगे हुवे हम जगते रहें पक्षियों का कलरव गूंजता रहे पर्वतों को गगन चूमता रहे [...]
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इस चमन की सुमन खिलते रहें
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प्यार की जो फ़सल बो गए
प्यार की जो फ़सल बो गए आदमी वो किधर को गए फूल ही फूल थे सब यहाँ कौन काँटे इधर बो गए हम कहें अब किसे आदमी आदमी तो असल खो गए देख बदलाव कैसा हुआ गाँव भी अब शहर हो गए जो कभी थे हमारा जिगर ग़ैर के हमसफ़र हो गए बाद मुद्दत के [...] More -
विचारों में जहाँ गहराइयाँ हैं
विचारों में जहाँ गहराइयाँ हैं ग़ज़ल लेती वहीं अंगड़ाइयाँ हैं जिसे चाहा हमें मिल जाए गर वो सताती फिर नहीं तनहाइयाँ हैं शजर काटे गए जिस गाँव में भी वहाँ चलती नहीं पुरवाइयाँ हैं क़दम अपने वहीं रखना सनम तुम जहाँ हँसती सदा अच्छाइयाँ हैं समय के साथ जो चलता हमेशा उसे आती नहीं कठिनाइयाँ [...] More -
सावन का मौसम है फिर भी क्यों पसरा है पतझर
कुछ भी ना बाहर है बाबा जो भी है भीतर है बाबा सावन का मौसम है फिर भी क्यों पसरा है पतझर बाबा वहीं क़दम अपने रखने हैं जहाँ मिले आदर है बाबा उतने ही तुम पैर पसारो जितनी चादर घर है बाबा बेघर क्यों कहते हो खुद को अपने भीतर घर है बाबा उससे [...] More -
यार वो भी कमाल करता है
यार वो भी कमाल करता है अपने दुश्मन को साथ रखता है हाथ में एक गुलाब रखता है और हँस हँस के बात करता है जिनसे उसे यहां मिला धोखा उन पे ही एतबार करता है अपनी ग़लती पे ख़ुद ही अपने से आप ही आप ख़ुद से लड़ता है रौशनी बांटता है दुनियां को [...] More -
शौक़ सारे छिन गये, दीवानगी जाती रही
शौक़ सारे छिन गये, दीवानगी जाती रही आयीं ज़िम्मेदारियाँ, तो आशिकी जाती रही मांगते थे ये दुआ हासिल हो हमको दौलतें और जब आयी अमीरी, शायरी जाती रही मय किताब-ए-पाक़ मेरी, और साक़ी है ख़ुदा बोतलों से भर गया दिल, मयकशी जाती रही रौशनी थी जब मुकम्मल, बंद थीं ऑंखें मेरी खुल गयी आँखें मगर [...] More -
लोग जो हालात से डर जायेंगे
लोग जो हालात से डर जायेंगे जिंदगी होते हुए मर जायेंगे ख़ून-ए-दिल से करके हम रौशन चिराग़ हर डगर में रौशनी भर जायेंगे बाब जो बन जायेंगे तारीख़ का काम कुछ ऐसे भी हम कर जायेंगे क्या ख़बर थी आज इस महफ़िल से हम लेके इक इल्ज़ाम, सर पर जायेंगे शेहरे-जुल्मत मेँ जो आ पहुँचे [...] More -
बर्बादियों की फ़सल उगाने लगे हैं लोग
बर्बादियों की फ़सल उगाने लगे हैं लोग बारूद खेत-खेत बिछाने लगे हैं लोग इन्सानियत की उठती हैं हर रोज़ अर्थियाँ मासूम बस्तियों को जलाने लगे हैं लोग शैतान को भी देख के आने लगी है शर्म किरदार अपना इतना गिराने लगे हैं लोग अख़बार में हैं रोज़ फसादों की सुर्खियाँ नफ़रत की आग जब से [...] More -
वो मेरा किरदार कहेगा
न वो मुझे फूल कहेगा न वो मुझे ख़ार कहेगा। बस इतनी इजाज़त है, वो मेरा किरदार कहेगा। - नमिता नज़्म नमिता नज़्म जी की रचना [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें More