Author Archives: Kavya Jyoti Team

  • विश्वास की बात करने पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    जाने क्यों ना चाँदनी सो

    जाने क्यों ना चाँदनी सो न सकी उस रात चन्दा ने हँसकर करी जब नदिया से बात नभ से बोली चाँदनी ऐसे मुझे न ताक देख लिया गर चाँद ने कट जायेगी नाक आज खड़ी घर द्वार पर गोरी कर श्रृंगार सजन खड़ा हो आड़ से उसको रहा निहार आँख मीच कर रहा सब पर [...] More
  • जग की पहचान पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    कोई छिड़कत रंग तो कोई मटकत अंग

    कोई छिड़कत रंग तो कोई मटकत अंग अपना अपना ढंग है अपना अपना रंग अपने से बहार निकल इस जग को पहचान बात समझ आ जायेगी, तू कितना नादान अन्तस् का पट खोल दे जग करेगा सलाम मन अपना भटका नहीं मन को लगा लगाम मीत समय को देखकर खटकाना तू द्वार भाग जायेगा देखना, [...] More
  • तेरी मेरी प्रीत की चर्चा हर घर दुवार

    तेरी मेरी प्रीत की चर्चा हर घर दुवार अब तो आजा साँवले राधा रही पुकार अन्तस् की किस को कहूँ समझ न आये बात कैसे सुलझेंगें सभी उलझे ये हालात तू सब कुछ है नाव फंसी मंझधार कर दे अब तो साँवले मेरा बेड़ा पार आशाओं के दुवार पर मटक रहा आकाश समय बचा थोड़ा [...] More
  • ऋतुराज आने पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    प्रेम के देवता ऋतुराज तुम

    प्रेम के देवता ऋतुराज प्रेम के देवता ऋतुराज तुम, लाते हो मोहब्बत की सौगात तुम। झुम उठती है सारी सृष्टी जब, आते हो फुलो पर सवार तुम । प्रेम के देवता ऋतुराज तुम..... कदंब की डाली पर कोयल गाती, गीत प्रेम के मधुर कंठ से गाती । गाती प्रेम के युगल गीत सुरीले जब प्रेम [...] More
  • लौट जाओ घर पर कविता, इरशाद अज़ीज़

    तुम मेरे हमराह चलना चाहती हो

    तुम मेरे हमराह चलना चाहती हो जलना चाहती हो मेरी जिन्दगी की तल्ख़ धूप में कुछ भी तो नहीं मिलेगा सिवाय रुसवाइयों के तुम्हारी यह ज़िद्द तुमको ख़ुद से दूर ले जायेगी रहने दो लौट जाओ अपने घर जिसे सजाया है तुमने अपने एहसास से महकाया है अपनी ख़ुशबू से न जाने कितने ही ख़्वाब [...] More
  • बिना तुम्हारे

    बिना तुम्हारे आज का गुज़रना इस उम्मीद के साथ आना होगा कल तुम्हारा आज को कल होने के बीच मेरा होना मुझे याद ही नहीं रहता तुम्हारा इंतजार आज से कल तक एक उम्र गुज़र जाने जैसा है | - इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की कविता इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको [...] More
  • रह जाता हूं तुम्हारे पास

    रह जाता हूं तुम्हारे पास तुम से बिछुड़ने के बाद पूरी तरह कभी नहीं लौट पाया अपने साथ जब भी बिछुड़ा तो हर बार थोड़ा-थोड़ा तुम्हारे पास रह गया हूं मैं सोचता रहा जब फिर मिलूंगा तो ले आऊंगा ख़ुद को तुम्हारे पास से पर हर बार पहले से और ज़्यादा रह ही जाता हूं [...] More
  • मानव सेवा पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह

    कलियों को जो खिला न पाये

    कलियों को जो खिला न पाये वह मधुमास बदलना होगा, जाग उठा है देश कि अब इसका इतिहास बदलना होगा || चन्दन वन में पगपग पर फणिधर का हुआ वसेरा, अब गुलाब की टहनी पर कांटो ने डाला डेरा || विष की गन्ध फैलती जाती मैला हुआ समीरन, भौरों का गुन्जार बन्द है कलियों का [...] More
  • जीवन की व्यथा पर कविता, देवेंद्र कुमार सिंह

    नागफनी बरगद के नीचे पले

    नागफनी बरगद के नीचे पले, चलो चले अब तो बबूल ही भले | भोर की किरन अब विषधर सी डस जाती, घायल मन मछरी जब बरबस ही फँस जाती | छाया के धोखे में हाड तक जले, चलो चले अब तो बबूल ही भले || तपती रेती ही अब जीवन की आशा है, तारों का [...] More
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