आ-मदे फिक्र की रवाँ बेची शान झूठी रखी अनां बेची वर्क इतिहास के गवाही दें कौनसी चीज़ कब कहाँ बेची जोश रखकर यहाँ खरीदी जो होश खोकर उसे वहाँ बेची क्या मुहाफिज़ कहें उन्हे अपना पेट के वास्ते जबाँ बेची दौर गर्दिश में ये खबर किसको रात कितनी जवाँ-जवाँ बेची कसमें वादे हया वफा उलफत [...]
More
-
आ-मदे फिक्र की रवाँ बेची
-
तू नज़र कुछ तो मिला
तू नज़र कुछ तो मिला तेरा इशारा चाहिए रूठकर मत जा सनम तेरा सहारा चाहिए आदमी बनकर रहूँगा ये मेरा वादा रहा साथ मुझको ओ सनम केवल तुम्हारा चाहिए चाँदनी बनकर हँसो मेरी ग़ज़ल के शेर में शेर मुझको ओ सनम ऐसा करारा चहिए ज़िन्दगी हँसने लगे ऐसा करूँ मैं काम कुछ देखने को अब [...] More -
आदमी को क्या हुआ
आदमी को क्या हुआ ये कह रहा है आइना लड़ रहे क्यों आदमी ये सोचता है आइना मारता क्यों आदमी को आदमी ही है यहाँ बात ये सारे जहाँ से पूछता है आइना अब शराफ़त की जहाँ में मीत कुछ क़ीमत नहीं ये हक़ीक़त जानकर सब, रो रहा है आइना गाँव की चौपाल भी तो [...] More -
चुप्पी साधे
चुप्पी साधे जब व्यक्ति मौन होता है मौन मे ही प्रश्न का हवाला होता है । दूसरों को जानने से पहले खु़द को जानो बाहर से जो हँसते उनका दर्द भी पहचानो दर्द की तहों में ही उजाला होता है मौन में ही प्रश्न का हवाला होता है । हिय में सबके प्रीत का घर [...] More -
जो मेरा हाल पढ़ सके
जो मेरा हाल पढ़ सके वो नज़र ढूँढती हूँ जो मेरे दिल में उतर सके वो बशर ढूँढती हूँ लाखों की भीड़ में हो के मुंतज़र ढूँढती हूँ इन सवालों के तलाश में जवाब-ए-असर ढूँढती हूँ - एकता खान एकता खान जी की कविता एकता खान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद [...] More -
दिल को मालूम है
दिल को मालूम है तू बस ख़्वाब ही है फिर क्यों तुझे पाने की ख़्वाहिश दबी सी है मीलों का फ़ासला है तेरे मेरे दरमियाँ फिर क्यों तुझे देखने की चाहत जगी सी है न तेरी ज़िंदगी में, न यादों में मेरा ठिकाना फिर क्यों तुझे याद कर आँख में नमी सी है जब से [...] More -
ज़िंदगी की भाग दौड़
ज़िंदगी की भाग दौड़ और गिनती की ये साँसे जिन्हें देखना चाहते हैं ख़ुश दूर उन्ही से हैं सारा दिन दिल में जिन्हें संजोते हैं आँखों में जिन्हें बसाते हैं उन्ही के दीदार को क्यों हर पल हम तरसते हैं - एकता खान एकता खान जी की कविता एकता खान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर [...] More -
अक्टूबर इकतीस को,
अक्टूबर इकतीस को, जन्मे सन्त सुजान। झवेर भाई लाडबा, की चौथी सन्तान।। कष्टों से जब हुआ सामना, देश प्रेम की जगी भावना। लंदन से पढ़ भारत आये, आज़ादी की अलख जगाये।। कृषकों के हित लड़े लड़ाई, सत्याग्रह की कर अगुवाई। ओजपूर्ण थी भाषा शैली, कीर्ति देश में उनकी फैली।। जाति धर्म से ऊपर उठकर, रहे [...] More -
प्रतिमा विशाल यदि
प्रतिमा विशाल यदि बनी सरदार की जो, वामी पीडी छाती पीट करते विलाप क्यों। एक परिवार के ही नाम सारी योजनाएं, करते हैं दिन रात उनके ही जाप क्यों। खण्ड खण्ड में विभक्त सूबों को वो जोड़ गए, मान उन्हें दे सके न आज तक आप क्यों। भारत की शान लौह पुरुष हैं रजत वो, [...] More