• दर्पण पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    चाहत है तो कुछ

    चाहत है तो कुछ दूरी जरूरी है दर्पण जैसी मज़बूरी ज़रूरी है आपको तब तक नहीं आएगी ज़ख़्मों की जबां जब तलक कांटे से कांटे को निकाला जाएगा "इक़बाल" अभी जहां में ज़िन्दा हैं नेकिया वर्ना गुलाबों में ये खुश्बू नहीं होती कराहने में और मज़ा आता है मौत जब सिरहाने खड़ी होती - इक़बाल [...] More
  • दुआओ पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    तुम तो अपना प्याला

    तुम तो अपना प्याला बड़ा रक्खो यारो ये साकी पे छोड़ो भरता कितनी है तेरे काग़ज के फूलों का सबब बेहतर समझता हूं वो चारागर है तू जो ज़ख्म को भरने नहीं देता बहुत दुश्वार है मुलाकात का आसां होना कभी वक़्त इजाज़त नहीं देता तो कभी आप दिल दे तो खुदा तरकश -सा दे [...] More
  • पैसो पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    मतले ही रह गये

    जाने अनजाने रिश्ते भी ख़ास हो जाते हैं जब पैसे दो पैसे किसी के पास हो जाते हैं मुफलिसी में चने बादाम नज़र आते हैं निबोलो के गुच्छे भी आम नज़र आते हैं हादसों की आग पे भी सेंकते रोटी हैं लोग मौत के माहौल में भी देखते रोटी हैं लोग पृष्ठ जब खुलेंगे कभी [...] More
  • आईने पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    चन्द खुले अश आर

    आईना धुंधला ही रहने दीजिये साफ़ होगा तो सच नहीं सह पाओगे आईना भी बेश क़ीमती हो जाएगा जिस दिन ये झूठ बोलने लग जाएगा होठों से कहकर बात को छोटा न कीजिये मेहन्दी ने खुद-ब-खुद कह दी है दास्तान कारवाँ अपना बचा कर, अब कहाँ ले जाएं हम मंजिलें जलती हुयी हैं, पुरख़तर हैं [...] More
  • बेजुबान पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    बुलन्दी पे नज़र

    बुलन्दी पे नज़र आने वाले बता कितने कांधे लहूलुहान किये हैं बनाने को अपना ये आलीशान मकाँ तबाह कितने कच्चे मकान किये हैं चुप वो यूँ बैठे हैं आगे सर झुकाये शायद पीछे कई बेजुबान किये हैं - इक़बाल हुसैन "इक़बाल" इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर [...] More
  • अपनों पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    मेहरबानी अपनों की

    मेहरबानी अपनों की, ये ही बहुत है कम से कम, ग़ैर से लुटवाया तो नहीं होके दर-बदर भी रह, इतनी तसल्ली मेरे नाम की, तख़्ती को हटवाया तो नहीं चाहे मारते हों पत्थर, वो मेरे आम पर ये इनायत है उनकी, कटवाया तो नहीं - इक़बाल हुसैन "इक़बाल" इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल [...] More
  • बेरहम हो गया

    बेरहम हो गया किस कदर ये जहां कांपती हैं जमी कांपता आसमाँ शोख़ जलवे सभी, खून से सन रहे आग बरसा रहीं फूल सी वादियाँ लूट कर ले गया कौन चेनो अमन परचमे मेल की कर गया धज्जियाँ ग़ैर को दे रहे आज मौका हँसे पुर सुकूं मुल्क पर उठ रहीं उंगलियां सुर्ख बुटे हुवे [...] More
  • तक़दीर पर दोहा, जगदीश तिवारी

    हार कभी ना मानना

    हार कभी ना मानना होना नहीं अधीर कर्म से मुख न मोड़ना बदलेगी तकदीर तुम जो मुझको साथ दो कर दें सबको मात और भगा दें हम सनम ! जग से काली रात जिसको रखना साथ हो पहले कर पहचान ऐसा ना हो बाद में तुझे करे हैरान सत्राटा तोड़ो सनम ! थामो हाथ कमान [...] More
  • भूल पर दोहा, जगदीश तिवारी

    एक ज़रा सी भूल ने

    एक ज़रा सी भूल ने कैसा किया धमाल देख जला के रख दिया इज्जत का ये शाल कहने से पहले सनम ! खुद को मन में तोल अपने मन की बात तू फिर दूजों को बोल पहले तो झट कह गये कहना था जो आप और कर रहे बाद में देखो पश्चाताप ! कर न [...] More
Updating
  • No products in the cart.