Tag Archives: डॉ. नसीमा निशा

  • दिल बहलने पर ग़ज़ल, डॉ. नसीमा 'निशा'

    कोई पराया भी अपना

    कोई पराया भी अपना निकल जाये तो और अपना ही कोई बदल जाये तो ये ज़बा ही तो है गर फ़िसल जाये तो कोई लफ़्ज़े मुहब्बत निकल जाये तो इसको क़ाबू मे रखने की, की कोशिशे दिल ये बच्चा सा है फ़िर मचल जाये तो रात काली अमावस भरी है तो क्या चाँद ऐसे में [...] More
  • प्यार की ममता पर ग़ज़ल, डॉ. नसीमा 'निशा'

    देख तू किस तरफ़

    देख तू किस तरफ़ बेखबर आ गया। चलते-चलते तेरा फ़िर से घर आ गया।। उसपे इल्ज़ाम कितने लगायेंगे लोग, भूले से कौन ये मोतबर आ गया। प्यार ममता की बातें चली जो कही, माँ का चेहरा मुझे फ़िर नज़र आ गया। ठोकरें जब लगी ज़िन्दगी में हमें , ज़िन्दगी जीने का तब हुनर आ गया। [...] More
  • किसान पर ग़ज़ल, डॉ. नसीमा 'निशा'

    मोहताज़ दाने दाने को

    मोहताज़ दाने दाने को होता रहा किसान। बंजर ज़मीं में ख्वाब को बोता रहा किसान।। सरकार हो किसी भी धोखा ही है मिला, लाचारियों को अपनी वो ढोता रहा किसान। सूखा पड़ा कभी तो, कभी बाढ़ आ गयी, बर्बाद इस तरह से भी होता रहा किसान। बेटी हुई जवान तो सर उसका झुक गया, बेबस [...] More
  • औरत पर ग़ज़ल, डॉ. नसीमा 'निशा'

    हिम्मत की हौसले की

    हिम्मत की हौसले की वो दीवार है औरत। जो मुश्किलों को काटे वो तलवार है औरत।। पैसों के बल से क्या इसे खरीद लोगे तुम, समझा है क्या तुमने कि बाज़ार है औरत। ताकत को इसकी तुमने अभी जाना है कहाँ, तूफ़ाने ज़िन्दगी की ये पतवार है औरत। मुँह तोड़ दुश्मनों का ये देती है [...] More
  • हमसफ़र पर ग़ज़ल, डॉ. नसीमा 'निशा'

    जब से उनकी नज़र हो गई।

    जब से उनकी नज़र हो गई। हर खुशी हमसफ़र हो गई।। राहे उल्फ़त में हर इक कदम, मैं तेरी रहगुज़र हो गई। उनको पा के भी पा न सके, हर दुआ बेअसर हो गई। आज की शब भी तन्हा कटी, वो न आये सहर हो गई। उनसे बिछड़े तो ऐसा लगा, ज़िंदगी मुख़्तसर हो गई। [...] More
  • शिकवा पर ग़ज़ल, डॉ. नसीमा निशा

    क्या करें शिकवा उस दिवाने से

    क्या करें शिकवा उस दिवाने से मान जाता है वो मनाने से वो किसी का भी हो नहीं सकता जानती हूँ उसे ज़माने से दर्दे दिल देके हंसता रहता है उसको मतलब है बस रुलाने से यों तो पतझर है मेरी दुनिया में रौनके आती उसके आने से उसकी फ़ितरत मे बेवफ़ाई है फ़ायदा क्या [...] More
  • मातृभाषा पर कविता, डॉ. नसीमा निशा

    हिन्दी हमारी राजभाषा

    हिन्दी हमारी राजभाषा इसपे हमें अभिमान है अपनेपन की मिश्री जैसी प्यारी ये ज़बान है सारी भाषाओं से देखो कितनी ये आसान है हिन्दी ही बने राष्ट्रभाषा बस ये ही अरमान है -डॉ. नसीमा 'निशा' डॉ. नसीमा निशा जी की कविता डॉ. नसीमा निशा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो [...] More
  • दर्दे दिल की किताब रहने दो

    दर्दे दिल की किताब रहने दो ये मुसलसल अज़ाब रहने दो तुम से करती हूँ इल्तिजा इतनी मेरी आँखों में ख्वाब रहने दो हर खुशी आपको मुबारक हो मेरी आँखों में आब रहने दो इश्क में हमने तुमने क्या पाया फ़िर करेंगे हिसाब रहने दो आप से क्या वफ़ा की उम्मीदे खैर, छॊडॊ जनाब रहने [...] More
  • इश्क़-मोहब्बत पर ग़ज़ल, डॉ. नसीमा निशा

    जब से उनकी नज़र हो गयी

    जब से उनकी नज़र हो गयी हर खुशी हमसफ़र हो गयी राहे उल्फ़त में हर इक क़दम मैं तेरी रहगुज़र हो गयी उनको पा के भी पा न सके हर दुआ बेअसर हो गयी आज की शब भी तन्हा कटी वो न आये सहर हो गयी उनसे बिछडे तो ऐसा लगा ज़िन्दगी मुख्तसिर हो गयी [...] More
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