Tag Archives: नसीर बनारसी

  • अंधेरा मिटाने चले, मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी'

    सोचिए बंधुवर सोचिये

    सोचिए बंधुवर सोचिये किस तरह आज कोई जिये । जो अंधेरा मिटाने चले बुझ गये वो दिये किसलिये । ज़ख्म से कोई खाली नही फिर जख्मो को कौन सिये । सोचिए बंधुवर सोचिये । बह चली त्रासदी की लहर । रोकिए रोकिए रोकिये । सोचिए बंधुवर सोचिये । किस तरह आज कोई जिये । दिल [...] More
  • हिंदी भाषा पर मुक्तक, मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी'

    प्यारी बोली हिन्दी की है

    प्यारी बोली हिन्दी की है प्यारा हिन्दुस्तान मुक्त करें नफ़रत हिंसा से अपना हिन्दुस्तान मिलकर सुख़-दुःख बांटें कहती इसकी माटी रहे चमकता और दमकता अपना हिन्दुस्तान -नसीर बनारसी मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी' जी की मुक्तक मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें More
  • देश के गद्दारो पर ग़ज़ल, मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी'

    कुछ लोग आज वतन तोड़ रहे हैं

    कुछ लोग आज वतन तोड़ रहे हैं अपने ही पैरों की ज़मीं छोड़ रहे हैं कुछ लोग चाहते हैं ऊँचा रहे मस्तक कुछ लोग देश का गाला मरोड़ रहे हैं कुछ लोग लहू बूँद -बूँद रहे जमा कुछ हैं जो लगातार ही निचोड़ रहे हैं कुछ लोग एकता की कोशिशों में लगे हैं कुछ हैं [...] More
  • घर में बटवारा, मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी'

    जिस घर में बटवारा हो जाता है

    जिस घर में बटवारा हो जाता है प्राणी प्राणी बंजारा हो जाता है हो जाता है प्यार एक सपने जैसा व्यक्ति स्वयं का हत्यारा हो जाता है किस तरह की भावना में आज हम बहने लगे हम नहीं हैं एक, अब तो लोग कहने लगे एकता की मीनारें खड़ी की हमने 'नसीर ' उसके गुम्बद [...] More
  • पर्यावरण पर कविता, मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी'

    इन पेड़ों पर कैसी ये वीरानी है

    इन पेड़ों पर कैसी ये वीरानी है टहनी-टहनी बिखरी एक कहानी है घाटी-घाटी सहमी-सहमी काँप रही इनकी कथा-व्यथा जानी पहचानी है इन पेड़ों पर... यहीं बहा करती थी सुन्दर सी चाँदी किन्तु आज तो हर झरना बे पानी है निगल रहा है कौन यहाँ की सुंदरता कौन बताये ये किसकी शैतानी है इन पेड़ों पर... [...] More
  • एकता पर कविता हिंदी में

    आओ प्यार की श्रृंखला बनायें

    कहीं कुछ भी नहीं है जान लो भाईयों जीना है मुकद्दर यह मान लो भाईयों खाली हाथ आये थे और जाना भी है बची है बीच की दूरी मान लो भाईयों एकता की बात सुनते आ रहे यही एक कथन सुनते आ रहे किस तरह खुशहाल हो अपना वतन युग-युग से यही सुनते आ रहे [...] More
  • आज हर व्यक्तित्व लगता थका हारा है

    आज हर व्यक्तित्व लगता थका हारा है

    आज हर व्यक्तित्व लगता थका हारा है और हर चेहरा की जैसे सर्वहारा है कौन ज़िम्मेदार है उनकी तबाही का उनकी किश्ती को भँवर में किसने उतारा है तोड़ कर पतवार उसकी फेंक दी किसने कर दिया किसने उसे यों बेसहारा है मुठ्ठियों में जो वक़्त को कैद करता था मान ले कि वक़्त ने [...] More
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