कायर देश की कायरता देखो , छिपकर करता है वार देखो । सिंह के सामने डरकर भागता, सोते शेर पर करता वार देखो। लहू के उसके बसी गद्दारी है, रग-रग मे जिसके मक्कारी है। नापाक है वो देश इस जमीं पर, वो एक दरिंदा,और अत्याचारी है। उसकी माटी गुनाह उपजती , वीर नही सिर्फ शैतान [...]
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वो एक कायर देश।
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पुलवामा हमले में शहीद जवानों की शहादत पर कविता
नन्हे हाथो के खिलौने गए, जवाँ बहन का कँगन गया। सिंदूर मिट गया सुहागन का भाई का हम सहारा गया। बूढी आँखो की रोशनी गई , बिमार माँ की दवाईयाँ गई। बच्चो की अब तो पढाई गई घर की सारी खुशियाँ गई। एक चिराग के बुझने से अँधियारा सारा फैल गया। दु:ख ,दर्द की काली [...] More -
प्रेम बनाम नफरत
प्रेम की धरती पर जब नफरतो की होली होती। देख लहू के रंग को जब भारत माँ रह रह रोती। शांति और प्रेम की धरती, नफरतो को कब तक सहेगी। आतंकवादी,हमलो से दहली कब तलब चुपी साधे रहेगी। वीरो व बलिदानो की धरती शहीदो का खुन बहा रही है। राजनीति की गंदी कुचालो से, जवानो [...] More -
उन राहों पे सजदे
उन राहों पे सजदे सनम होंगे जिन पे तेरे नक्शे कदम होंगे पूछे जो ना मज़हब पता खित्ता जगमग वो ही दैरो हरम होंगे जो दिल में हो मुंह पर वही रखना दूर तब ही ये रंजो अलम होंगे राहे वफा आसान नहीं होगी चलना है तो लाखों सितम होंगे आईने से गर रहोगे बनकर [...] More -
महरबानी हुई बड़ी मुझ पर
महरबानी हुई बड़ी मुझ पर आपकी जो नज़र पड़ी मुझ पर नज़र भर कर के जो देखा तुमने इस जहां की नज़र गड़ी मुझ पर खत गुलाबो भरे मिले जब से उंगलियाँ हो गयीं खड़ी मुझ पर जब मुलाक़ात का हुआ वादा तो सदी सी चढ़ी घड़ी मुझ पर इक फ़क़त आपकी नवाज़िश से लग [...] More -
मूंद कर आँख तुम
मूंद कर आँख तुम भले रखना सोच के दायरे खुले रखना लाख टुकड़े हों घर आंगन के नैन से नैन पर मिले रखना लुत्फ चाहो अगर चे जीने में साँस के साथ मरहले रखना फैज क्या धूप में जलाने से इन चरागों को दिन ढले रखना लोग अहसास से परे हों तो होठ अपने वहाँ [...] More -
निकल कर दिल से
निकल कर दिल से मेरे आप खता पाओगे घर जो ठुकराया तो बाहर न जगाह पाओगे हम तो सह लेगे सभी नाज़ो अन्दाज़ तेरे ग़ैर के साथ न इक रात बिता पाओगे घर की घर में ही रहे बात जहां तक अच्छा बात निकलेगी तो किस किस छुपा पाओगे रात कट जाए ना यूं बातों [...] More -
वह चुप रहती है
वह चुप रहती है तो बोलती हैं उसकी आंखें सुनाती हैं अनकहे किस्से-कहानियां जो उसके मन ने कही उसने सुनी नहीं उतर सकी अब तक काग़ज़ पर शायद इसलिए कोई पढ़ ना ले या फिर शब्दों में बंधना नहीं चाहती वह जानती होगी चुप रहने का सुख | - इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की [...] More -
तुम्हारी आंखों में
तुम्हारी आंखों में मैं अपने ख़्वाबों के गुलशन सजाता हूं कहो ख़ामोश क्यूं हो तुम भी तो मेरे ख़्वाब देखती हो सोचती हो मुझे मेरे घर का नक्शा रोज क़ाग़ज़ पर बनाती हो मिटा देती हो पोंछ लेती हो अपने आंसू जब तुम रोती हो तो भीग जाते हैं मेरी डायरी के पन्ने फैल जाती [...] More