नन्हे हाथो के खिलौने गए, जवाँ बहन का कँगन गया। सिंदूर मिट गया सुहागन का भाई का हम सहारा गया। बूढी आँखो की रोशनी गई , बिमार माँ की दवाईयाँ गई। बच्चो की अब तो पढाई गई घर की सारी खुशियाँ गई। एक चिराग के बुझने से अँधियारा सारा फैल गया। दु:ख ,दर्द की काली स्याही से सन्नाटा ही सन्नाटा पसर गया। “हेमा” इनका दर्द कैसे बाँटे, गमो के पहाड़ को कैसे काटे। दु:ख,दर्द को अलग कैसे छाँटे हर तरफ है वेदनाओ के काँटे। – हेमलता पालीवाल “हेमा” हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की कविता हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
पुलवामा हमले में शहीद जवानों की शहादत पर कविता
नन्हे हाथो के खिलौने गए,
जवाँ बहन का कँगन गया।
सिंदूर मिट गया सुहागन का
भाई का हम सहारा गया।
बूढी आँखो की रोशनी गई ,
बिमार माँ की दवाईयाँ गई।
बच्चो की अब तो पढाई गई
घर की सारी खुशियाँ गई।
एक चिराग के बुझने से
अँधियारा सारा फैल गया।
दु:ख ,दर्द की काली स्याही से
सन्नाटा ही सन्नाटा पसर गया।
“हेमा” इनका दर्द कैसे बाँटे,
गमो के पहाड़ को कैसे काटे।
दु:ख,दर्द को अलग कैसे छाँटे
हर तरफ है वेदनाओ के काँटे।
– हेमलता पालीवाल “हेमा”
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की कविता
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ
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