तुम्हारी आंखों में
मैं अपने ख़्वाबों के गुलशन सजाता हूं
कहो ख़ामोश क्यूं हो
तुम भी तो मेरे ख़्वाब देखती हो
सोचती हो मुझे
मेरे घर का नक्शा
रोज क़ाग़ज़ पर बनाती हो
मिटा देती हो
पोंछ लेती हो अपने आंसू
जब तुम रोती हो तो
भीग जाते हैं
मेरी डायरी के पन्ने
फैल जाती है
मेरी ग़ज़लों नज़्मों की सियाही
गीत तो सिसकियां भरने लगते हैं
तुम इतनी रोया मत करो
देखो कितनी सीलन आ गई
मेरे घर की दीवारों में |
तुम्हारी आंखों में
तुम्हारी आंखों में
मैं अपने ख़्वाबों के गुलशन सजाता हूं
कहो ख़ामोश क्यूं हो
तुम भी तो मेरे ख़्वाब देखती हो
सोचती हो मुझे
मेरे घर का नक्शा
रोज क़ाग़ज़ पर बनाती हो
मिटा देती हो
पोंछ लेती हो अपने आंसू
जब तुम रोती हो तो
भीग जाते हैं
मेरी डायरी के पन्ने
फैल जाती है
मेरी ग़ज़लों नज़्मों की सियाही
गीत तो सिसकियां भरने लगते हैं
तुम इतनी रोया मत करो
देखो कितनी सीलन आ गई
मेरे घर की दीवारों में |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की कविता
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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